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काव्य प्रयोजन | Kavya Prayojan
काव्य जीवन की अभिव्यक्ति है। जीवन से साहित्य का अटूट संबंध है अतः जीवन-प्रेरणाएँ ही काव्य प्रेरणाएँ हैं। जीवन के आदर्श ही साहित्य/काव्य के आदर्श और प्रयोजन है। आजकल कुछ विद्वान ‘काव्य के उद्देश्य’ पर विचार करना निरुद्देश्य समझते हैं। उनका मत है कि काव्य एक ललित कला है, जो सौंदर्य का प्रत्यक्षीकरण है। उसका मूल उत्स आनंद है और आनंद का कोई प्रयोजन नहीं होता।

काव्य प्रयोजन का अर्थ | Kavya Prayojan ka arth
काव्य प्रयोजन का अर्थ होता है – काव्य के उद्देश्य। कोई काव्य किस उद्देश्य से लिखा गया है, यह ग्रन्थकार ग्रन्थारम्भ में ही बता देता है जिससे पाठक में रुचि जागृत हो। ऐसा इसलिये किया जाता है क्योंकि कहावत है “प्रयोजनमनुद्दिश्य मन्दोऽपि न प्रवर्तते ।” बिना प्रयोजन के मूर्ख भी किसी काम में प्रवृत नही होता।
काव्य प्रयोजन की परिभाषा | Kavya Prayojan ki Paribhasha
काव्य के आधार पर हमें जो प्राप्त होता है, उसे ही काव्य प्रयोजन कहा जाता है। हर वस्तु का अपना विशिष्ट प्रयोजन होता है। साहित्य का सृजन एवं पठन-अध्ययन भी स्वद्देश्य होता है।
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काव्य प्रयोजन (Kavya Prayojan) के संबंध में संस्कृत आचार्यों का मत
भामह : भामह प्रथम आचार्य हैं जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप में काव्य-प्रयोजनों पर विचार किया है। यद्यपि उनके काव्य-प्रयोजन संबंधी चिंतन में आचार्य भरत का सीधा प्रभाव दृष्टिगत होता है तथापि उसमें कुछ नवीन तथ्यों का भी समावेश है-
धर्मार्थकाम मोक्षेषु वैचक्षण्यं कलासु च।
प्रीतिं करोति कीतिं च साधुकाव्य निबंधनम्।।
अर्थात् धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष (पुरुषार्थ चतुष्टय), कलानिपुणता, कीर्ति और प्रीति (आनंद) की प्राप्ति को भामह ने काव्य-प्रयोजन के रूप में निर्दिष्ट किया है। काव्य-प्रयोजन संबंधी चिंतन में भामह ने प्रीति (आनंद की प्राप्ति) को मुख्य प्रयोजन माना है जिससे परवर्ती आचार्यों को विशेष प्ररेणा मिली।
वामन : आचार्य वामन ने दृष्ट और अदृष्ट के रूप में काव्य के दो प्रयोजन स्वीकार किए। इनमें दृष्ट का संबंध आनंद तथा अदृष्ट का संबंध कीर्ति से है। वे काव्य-सृजन को यश (प्रसिद्धि) का सहज साधन मानते हैं। वामन के काव्य-प्रयोजन में सर्जक (कवि) और भावक (सहृदय) दोनों को महत्व दिया है। उन्होंने आचार्य भामह द्वारा निरूपित काव्य-प्रयोजन ‘कीर्ति’ और प्रीति को अपने काव्य-प्रयोजनों में स्थान दिया है किंतु धर्म और मोक्ष का उल्लेख नहीं किया।
रुद्रट : आचार्य रुद्रट ने ‘यश’ को अधिक महत्व दिया है। साथ ही वे अनर्थ का नाश और अर्थ की प्राप्ति को भी काव्य का प्रयोजन माना है। अनर्थ के नाश से पाठक और श्रोता सुख आनंद की प्राप्ति करता है। आचार्य दण्डी ने वाणी का महत्व प्रतिपादित करते हुए काव्य रचना के प्रयोजनों को स्वीकारा है। ज्ञान की प्राप्ति यश की प्राप्ति
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काव्य-प्रयोजन (Kavya Prayojan) के संबंध में हिंदी-साहित्यकारों के मत
1. तुलसीदास
हिंदी के मध्यकालीन सुप्रसिद्ध कवि तुलसीदास ने ‘स्वान्तः सुखाय’ अर्थात् ‘आत्म आनन्दोपलब्धि’ तथा “कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरी सम सब कहँ हित होई॥” अर्थात लोकमंगल को काव्य का प्रयोजन स्वीकार किया है।
हिंदी के रीतिकालीन आचार्यों और आधुनिक आलोचकों ने काव्य-प्रयोजन के संबंध में चिंतन किया है। रीतिकालीन कवियों के काव्य-प्रयोजन के निरूपण में संस्कृत आचार्यों के ग्रंथों का विशेष प्रभाव लक्षित होता है।
2. आचार्य सोमनाथ
आचार्य सोमनाथ का लक्षण ग्रंथ ‘रस पीयूष निधि’ है जिसमें उन्होंने कीर्ति, धन, मनोरंजन, मंगल और सदुपदेश को काव्य प्रयोजन स्वीकार किया।
कीरति वित विनोद अरू अति मंगल को रेति ।
करौ भलौ उपदेश नित बहु कवित्त चित चेति ।
कीर्ति, धन, मंगल और उपदेश के साथ मनोरंजन को सम्मिलित करना सोमनाथ की मौलिकता है। अतः सोमनाथ का काव्य-प्रयोजन संस्कृत के आचार्यों से प्रभावित होते हुए भी मौलिकता पूर्ण है।
3. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
आधुनिककाल में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य के विभिन्न पक्षों पर चिंतन किया है। वे लोक हित, आनंद तथा नीति एवं सात्विक भावों के उन्नयन को काव्य का प्रयोजन मानते हैं।
4. आचार्य रामचंद्र शुक्ल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार आनंद एवं मंगल की सिद्धि काव्य का मूल एवं व्यापक प्रयोजन है, जिसके दो रूप हैं साधनावस्था, और सिद्धावस्था वे सौंदर्य के माध्यम से आनंद और लोकमंगल के विधान को प्रयोजन निरूपित करते हैं। शुक्लजी ने काव्य- प्रयोजनों का निरूपण प्रायः सामाजिक दृष्टि से किया है। ‘चिंतामणि- भाग एक’ के निबंध ‘कविता क्या है?’ में काव्य के प्रयोजन को व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा है-
“कविता ही मनुष्य के हृदय को स्वार्थ संबंधों के संकुचित मंडल से ऊपर उठाकर लोक सामान्य भाव भूमि पर ले जाती है। कविता ही मनुष्य को प्रकृतदशा में लाती है और जगत के बीच उसका अधिकाधिक
प्रसार करती हुई मनुष्यता की उच्चभूमि पर ले जाती है।”
5. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है। द्विवेदी जी की काव्य-प्रयोजन संबंधी धारणा मुख्यतः मानवतावादी है। उन्होंने एक निबंध भी लिखा है जिसका शीर्षक है- “मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है।” इस निबंध में वे लिखते हैं, मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी वस्तुतः काव्य या कला का प्रयोजन जीवन के लिए मानते हैं। उनका दृष्टिकोण मानवतावादी है। इस संदर्भ में उनका कथन द्रष्टव्य है- “साहित्य के उत्कर्ष या अपकर्ष के निकष की एकमात्र कसौटी यही हो सकती है कि वह मनुष्य का हित साधन करता है या नहीं। जिस बात के कहने से मनुष्य पशु-सामान्य धरातल के ऊपर नहीं उठता, वह त्याज्य है।”
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काव्य-प्रयोजन Kavya Prayojan के संबंध में मनोवैज्ञानिकों के मत
फ्रायड, एडलर, जुंग इत्यादि मनःशास्त्रियों ने भी साहित्य के प्रयोजन पर विचार किया है, जिन्हें इस प्रकार देखा जा सकता है –

1. फ्रायड
मानव की सभी क्रियाओं के मूल में कामवासना रहती है। साहित्य, कला-सृजन की मूल प्रेरणा सर्जक की दमित कमवासना है।
2. एडलर
इनके अनुसार हीनता की क्षतिपूर्ति साहित्य-सृजन की मूल प्रेरणा है। जीवन में किसी-न-किसी अभाव के कारण मानव-मन में हीनता की ग्रंथि (Inferiority Complex) पड़ जाती है। अतः वह अपनी अपूर्णता को पूर्णता में बदलने के लिए साहित्य, कल-सृजन में प्रवृत्त होता है।
3. जुंग
जुंग ने कामवासना के साथ-साथ प्रभुत्व-कामना को काव्य की प्रेरक शक्ति बताते हुए कहा कि आत्मरति और प्रभुत्व-कामना दो ऐसी सशक्त प्रवृत्तियाँ हैं, जो मानव के सभी क्रिया-कलापों की प्रेरक शक्ति होती है।
निष्कर्ष
काव्य प्रयोजन के संबंध में हमने यहां पूरी जानकारी देने की कोशिश की है। ये लेख जिसमें काव्य प्रयोजन (Kavya Prayojan), काव्य प्रयोजन का अर्थ (Kavya Prayojan ka arth), काव्य प्रयोजन (Kavya Prayojan) के संबंध में संस्कृत आचार्यों का मत, काव्य-प्रयोजन (Kavya Prayojan) के संबंध में हिंदी-साहित्यकारों के मत तथा काव्य-प्रयोजन Kavya Prayojan के संबंध में मनोवैज्ञानिकों के मत को शामिल किया है।
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FAQs : Kavya prayojan
काव्य प्रयोजन का अर्थ क्या है ?
काव्य प्रयोजन का अर्थ होता है – काव्य के उद्देश्य।
काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं ?
काव्य के आधार पर हमें जो प्राप्त होता है, उसे ही काव्य प्रयोजन कहा जाता है।
काव्य प्रयोजन और काव्य हेतु के बीच अंतर
काव्य-हेतु की सहायता से ही कवि काव्य-रचना में सफलता प्राप्त करता है। वहीं, काव्य प्रयोजन काव्य रचना के पश्चात प्राप्त फल होता है। इन्हें प्रेरक तत्व भी कहते हैं।
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