Kavya | काव्य का अर्थ, परिभाषा व लक्षण: काव्य एक विधा है जबकि कविता उस पद्यबद्ध रचना को कहते हैं जो हृदय की भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति है तथा पाठकों को भावानंद प्रदान करने की क्षमता रखती है। काव्य का अर्थ क्या होता है? उसकी परिभाषा व लक्षण क्या है? इसे जानने से पहले ये जान लें कि काव्य के उत्पत्ति कहां से हुई या फिर किस शब्द से हुई है?
भारत के प्राचीनतम भाषाओं में से एक संस्कृत के काव्य शास्त्रियों ने प्रायः कवि-कर्म को काव्य कहा है। इस वजह से भी ये कहा जाता है कि ‘काव्य’ शब्द की उत्पत्ति ‘कवि’ शब्द से हुई है। ‘कवि’ शब्द ‘कु’ धातु में ‘इच्’ प्रत्यय लगने से बनाहै। ‘कु’ धातु का अर्थ है– शब्द करना या बोलना। इस धातु के अन्य अर्थ हैं – व्याप्ति या आकाश।
Kavya | काव्य का अर्थ क्या हैं ? Meaning of Poetry
‘कवे: कर्म काव्यम्’ के आधार पर हम कह सकते हैं कि कवि का कर्म ही काव्य है। ऊपर दिए गए जानकारी के आधार पर हम कह सकते हैं –
“कवि वह व्यक्ति है जो शब्द करता है, बोलता है या कलरव करता है। या कवि वो व्यक्ति है जो आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त है।”
इसी संदर्भ में आचार्य विद्याधर ने कहा है – ‘कवयतीति: कवि: तस्य कर्म काव्यम्’ अर्थात जो वर्णन करता है, कविता करता है; उसके कर्म को काव्य कहते हैं। आचार्य अभिनव गुप्त भी कुछ यही भाव अभिव्यक्त करते हैं – ‘कवनीयं काव्यम्’ अर्थात जो वर्णनीय है वही काव्य है।
Poetry तथा poet किसे कहेंगे ?
आज के समय के काव्य और कवि की मीनिंग थोड़ा अलग है, लेकिन कमोबेश वही है। पाश्चात्य साहित्य जगत में काव्य के लिए जो शब्द का प्रयोग किया जाता है वो शब्द है ‘पोएट्री‘ (Poetry)। यह ‘पोयट‘ (Poet) शब्द से बना है। पाश्चात्य साहित्य के अनुसार Poet वो है जो निर्माण, विनिर्माता या रचना करता है। अतः पोएट (Poet) वह है जो निर्माण करता है, सर्जन करता है, रचना करता है।
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काव्य की परिभाषा | kavya ki paribhasha
अभी तक काव्य की ऐसी कोई सटीक परिभाषा नहीं है जिसपर सभी कवियों और विद्वानों की सहमति हो। काव्य की क्या परिभाषा हो सकती है, इसके क्या लक्षण हो सकते हैं; इस विषय में विद्वानों के अलग-अलग राय और मानना है। कुल मिलाकर इस प्रकरण पर काफी मतभेद हैं। संस्कृत आचार्यों, रीतिकालीन आचार्यों तथा आधुनिक कवियों व आलोचकों ने अपने-अपने ढंग से काव्य की परिभाषा दी है।
युगों-युगों में काव्य | Poetry through the ages
बहुत समय पहले यानी शुरुआत में छंदोबद्ध रचना को ही काव्य माना जाता था। उस समय के छंद लिखने वाले धुरंधरों जैसे वाल्मीकि तथा व्यास को कवि कहा गया तो शुक्राचार्य को भी कवि कहा गया जो कि एक राजनीतिज्ञऔर नीतिकार थे। इसी प्रकार से चिकित्सा संबंधी ग्रंथों तथा ज्योतिष संबंधी ग्रंथों को भी काव्य कहा गया। लेकिन आगे चलकर यह स्पष्ट हो गया कि आनंददायक रचनाएं ही काव्य की श्रेणी में रखी जा सकती हैं। अन्य शब्दों में ये कहा जा सकता है कि –
“वह रचना ‘काव्य’ शब्द से अभिहित की जा सकती है जो
पाठकों या श्रोताओं को भावानंद प्रदान करने की क्षमता रखती हो।”
समय बीतता गया और बाद में ‘काव्य‘ को ‘साहित्य‘ शब्द का पर्याय मान लिया गया। इसी के चलते नाटक को भी काव्य में सम्मिलित कर लिया गया। इस समय तक काव्य का मतलब ये माना जा रहा था कि सब प्रकार की गद्य-पद्यमयी रचनाएं जो आनंद की भावना प्रदान करता है वो काव्य है।
काव्य और साहित्य के बीच अंतर | Poetry vs Literature
हालांकि, आज ‘काव्य‘ शब्द का अर्थ संकुचित हो गया है और ‘साहित्य‘ शब्द का
अर्थ व्यापक हो गया है। ‘काव्य ‘शब्द अंग्रेजी के ‘पोयट्री‘ (Poetry) शब्द का पर्यायवाची है तथा ‘साहित्य‘ लिटरेचर (Literature) का। काव्य के अंतर्गत केवल पद्य-रचनाएं समाहित होती हैं लेकिन साहित्य के अंतर्गत गद्य-पद्यमयी सभी भावानंददायक रचनाएं समाहित की जा सकती हैं।
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काव्य के लक्षण | Kavya ke Lakshan
1. संस्कृत काव्यशास्त्र के आचार्यों के अनुसार काव्य के लक्षण
संस्कृत काव्यशास्त्र में सर्वप्रथम आचार्य भरत मुनि ने अपनी रचना नाट्यशास्त्र में काव्य- संबंधी विचार प्रस्तुत करते हुए कहा – ”कोमलएवं ललित पदों से युक्त, गूढ़-शब्दार्थ रहित, सर्वजन सुबोध,युक्ति-युक्त, नृत्य योजना से युक्त, विभिन्न रसों को प्रवाहित करने वाली तथा अनुकूल संधि-योजना वाली रचना उत्तम काव्य कही जा सकती है।” हालांकि, अधिकांश विद्वान मानते हैं कि भरत मुनि ने यह परिभाषा नाटक को लक्षित करके दी है। वे इसे काव्य के लक्षण स्वीकार नहीं करते।
आचार्य भामह-
शब्द और अर्थ के सहित भाव को काव्य कहते हैं। अपने ग्रंथ ‘काव्यालंकार’ में वे
लिखते हैं – “शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्” | यह परिभाषा अतिव्याप्ति दोष से ग्रसित है इसके अनुसार तो प्रत्येक सार्थक रचना काव्य स्वीकृत की जाएगी।
आचार्य वामन-
वामन ने गुणों तथा अलंकारों से युक्त शब्दार्थ को काव्य माना है। वामन ने अपनी इस परिभाषा में गुणों और अलंकारों को महत्व दिया है। हालांकि, यह परिभाषा भी स्वीकार नहीं की जा सकती है क्योंकि ऐसा करने से तो गुणहीन और अलंकारहीन रचनाओं को काव्य नहीं कहा जाएगा।
2. रीतिकालीन आचार्य कवियों के मत
रीतिकालीन आचार्य कवियों ने काव्य का कोई मौलिक लक्षण प्रस्तुत नहीं किया। इस काल के कवि भी कहीं ने कहीं संस्कृत आचार्य से प्रभावित दिखाई देते हैं। अंतर केवल इतना है कि संस्कृत आचार्यों जो बात संस्कृत भाषा कही वही इन्होंने हिंदी में कह दी।
3. आधुनिक विद्वानों के काव्य संबंधी मत
आज की हिंदी कविता अलग साचें में ढल चुकी है। पुराने संस्कृत काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों के आधार पर नहीं बल्कि पाश्चात्य काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों के अनुरुप चीजें दिखती हैं। हालांकि निकट जरुर है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी अपनी रचना रसरंजन में लिखते हैं ”कविता प्रभावशाली रचना है जो पाठक यशोदा के मन पर आनंद में प्रभाव डालती है।”
बाबू श्यामसुंदर दास के अनुसार – “हम किसी पुस्तक को साहित्य या काव्य की संज्ञा तभी दे सकते हैं अगर वह कला के उद्देश्यों को पूरा करती है।”
प्रमुख छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद कहते हैं – ”काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है जिसका संबंध विश्लेषण, विकल्प या विज्ञान से नहीं है। वह एक श्रेयमयी प्रेय रचना है।”
श्रीमती महादेवी वर्मा लिखती हैं – ”कविता कवि विशेष की भावनाओं का चित्रण है और वह चित्र इतना ठीक है कि उसमें वैसी ही भावनाएं किसी दूसरे के ह्रदय में आविर्भूत होती हैं।”
कवि सुमित्रानंदन पंत जी लिखते हैं – ”कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है।”
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निष्कर्ष
तो ये थी काव्य का अर्थ, परिभाषा व लक्षण से सम्बंधित जानकारी… ये आपको कैसी लगी, आप हमें कमेंट कर जरुर बताएं। बाकी आप इसी तरह की जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर बनें रहें। आप हमारी दूसरी साइट Ratingswala को भी विजिट कर सकते हैं।
FAQs
काव्य का अर्थ क्या है ?
कवि का कर्म ही काव्य है अथवा ‘कवनीयं
काव्यम्’ अर्थात जो वर्णनीय है वही काव्य है।
काव्य की परिभाषा लिखें
उस रचना को ‘काव्य’ कह सकते हैं जो पाठकों या श्रोताओं को भावानंद प्रदान करने की क्षमता रखती हो।
काव्य के लक्षण क्या हैं ?
अलग-अलग काल के विद्वानों ने अलग-अलग काव्य लक्षण को बताया है। चाहें वो संस्कृत के विद्वान हों या फिर रीतिकाल के काव्यशास्त्र हों या पाश्चात्य काल के हों।
काव्य और कविता में क्या अंतर है ?
काव्य (पुल्लिंग) एक विधा है जिसके माध्यम से अभिव्यक्ति होती है या की जाती है जबकि कविता (स्त्रीलिंग) काव्य का रचनात्मक स्वरूप है।
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great jankari थैंक्यू सो mach good night sir ji