Aaj Kal ki Dosti par kavita: दोस्ती एक पवित्र रिश्ता होता है, जो दिलों से जुड़ता है न कि स्वार्थ से. लेकिन आज की तेज़-रफ्तार दुनिया में रिश्ते दिखावे और मतलब के इर्द-गिर्द घूमने लगे हैं. यह कविता उन्हीं कड़वे अनुभवों का आईना है, जहां दोस्ती के नाम पर सिर्फ खोखली बातें और झूठी हंसी शेष रह गई है. लेखिका ने बड़ी संवेदनशीलता से इस विषय को छूते हुए एक ऐसा चित्र खींचा है जो हर किसी को सोचने पर मजबूर करता है- क्या अब भी कहीं कोई सच्चा दोस्त बचा है?
कलियुगी दोस्त | Aaj Kal ki Dosti par kavita
Aaj Kal ki Dosti par kavita
झूठी मुस्कानें, मीठे बोल,
पीठ पीछे जहर के गोल।
चाहत में नहीं, स्वार्थ में डूबे,
कलियुगी दोस्त हैं दिल से रूखे।
वक्त पड़े तो याद करें,
वरना नाम तक भूल जाएं।
जो साथ थे हर मोड़ पे पहले,
अब मतलब से ही मुंह दिखाएं।
शब्दों से खेलें, भावनाएं चुराएं,
सच्ची दोस्ती को भी सौदों में लुटाएं।
आज के रिश्ते, बस दिखावे के हैं,
दिल से नहीं, बस ज़रूरत के हैं।
साझा हंसी, मगर दर्द अकेला,
कंधा न दें, बस बनें झमेला।
फेसबुक, इंस्टा पे लाइक ज़रूर,
पर हाल पूछें, न इतनी दूर!
फिर भी उम्मीद है, कहीं कोई होगा,
जो इस भीड़ में सच्चा दोस्त होगा।
झूठे नहीं, जो साथ निभाएं,
हर मोड़ पे कंधे से कंधा मिलाएं।
Dr. Arti
कविता के अंत में, निराशा के बीच एक उम्मीद की किरण दिखाई देती है—कि शायद कहीं इस भीड़ में एक सच्चा दोस्त अब भी मौजूद है, जो मतलब से परे, भावनाओं को समझे और हर मोड़ पर कंधे से कंधा मिलाकर साथ चले. यह रचना केवल एक कविता नहीं, बल्कि आज के सामाजिक व्यवहार पर एक मार्मिक टिप्पणी है, जो पाठक के दिल को छू जाती है.
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