Romance par kavita: रोमांस तथा प्रेम, एक ऐसी मानवीय भावना है जो अनादि काल से कवियों की प्रेरणा रही है। हर युग और हर सभ्यता में, प्रेम के विभिन्न रूपों और रंगों को कविताओं में ढाला गया है। “रोमांस पर कविता” सिर्फ शब्दों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह मानवीय हृदय के सबसे गहरे अनुभवों, आकांक्षाओं और पीड़ाओं का कलात्मक प्रकटीकरण है। यह वह दर्पण है जिसमें हम अपने स्वयं के प्रेम को, उसके जुनून को, उसकी कोमलता को, और कभी-कभी उसकी टूटन को भी देख पाते हैं। इस लेख में, हम प्रेम कविताओं के महत्व, उनके विकास और वे कैसे हमारी भावनाओं और जीवन को समृद्ध करती हैं, इस पर गहराई से विचार करेंगे।
टिमटिमाते तारों जैसे हो तुम | Romance par kavita
टिमटिमाते तारों जैसे हो तुम
रोज़ दिखते तो हो पर पहुँच से दूर
और सच्चाई के सूरज की तेज रौशनी में
आँखों से हो जाते हो ओझल
और तुम हो अधूरे ख़्वाबों की तरह
मेरी लब की वो मुस्कान
जो आँख खुलते ही खो जाती है
घुल जाती है मेरे कड़वे आंसुओं में
तुम हो रेगिस्तान की वो मृगतृष्णा
जिसकी तलाश में प्यासा भटकता रहता है
तपती जलती रेत में
पर उसका वज़ूद सिर्फ उसके ख्यालों में होता है
और इसलिए मैं भटकती हूँ जलती हुई रेत पर
तब तक जब तक टिमटिमाते हुए तारे नहीं दिखते
जिन्हें देख कर मेरी आँखें खुद बंद हो जाती हैं
तुम्हारे ख्वाब की चाह में
भारती गुलज़ार
यह Romance par kavita एक अधूरी मोहब्बत और खोए हुए सपनों की पीड़ा को बयां करती है। कवयित्री अपने प्रेम को टिमटिमाते तारों से तुलना करती हैं — जो हर रात दिखते तो हैं, पर दूर और छू पाने से परे हैं। सच्चाई की रोशनी में वह प्रेम आँखों से ओझल हो जाता है। यह प्रेम एक अधूरे ख्वाब की तरह है, जो मुस्कान बनकर आता है लेकिन सुबह की कड़वी सच्चाइयों में घुलकर खो जाता है। वह प्रेम रेगिस्तान की मृगतृष्णा जैसा है — जो दिखता है, पर होता नहीं है। अंततः कवयित्री उसी मृगतृष्णा की तलाश में भटकती रहती हैं, जब तक थक कर आँखें मूंद न लें — उस खोए हुए प्रेम की तलाश में।
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