Shabd Vichar | शब्द की परिभाषा, भेद व उदाहरण | हिंदी व्याकरण

By Ranjan Gupta

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Shabd Vichar | शब्द की परिभाषा, भेद व उदाहरण | हिंदी व्याकरण के एक नए अध्याय में आप सभी का स्वागत है। इस लेख में हम आपको बताने वाले हैं; शब्द किसे कहते हैं ?  शब्द की परिभाषा क्या है ? शब्द के कितने भेद हैं ? शब्द और पद में अंतर क्या है ? इत्यादी > तो आइए बिना किसी देरी के शुरु करते हैं…✔

शब्द | word | shabd

हिंदी भाषा में शब्द का अत्यंत महत्वपूर्ण
स्थान है। यह व्याकरण का एक महत्वपूर्ण घटक है जो हमारे भाषा को संरचित और समझने
में सहायक होता है।
इसके लिए हिंदी
साहित्य में एक पूरा खंड हैं जिसे शब्द विचार कहते हैं। गौरतलब है कि हिंदी
व्याकरण के तीन खंड होते हैं
, वर्ण, शब्द
और वाक्य विचार। शब्द विचार (
Shabd Vichar) हिंदी
व्याकरण का दूसरा खंड है जिसके अंतर्गत शब्द की परिभाषा
, भेद-उपभेदसंधि, विच्छेद, रूपांतरण,
निर्माण आदि से संबंधित नियमों पर विचार किया जाता है।

 

shabd ki paribhasha bhed wah udaharan
shabd | शब्द | Word – poems wala 

शब्द की परिभाषा | shabd ki paribhasha

शब्द की परिभाषा :- दो या दो से अधिक वर्णो से बने ऐसे समूह को
‘शब्द’ कहते है
, जिसका कोई न कोई अर्थ जरुर हो। इसको
ऐसे भी परिभाषित किया जाता है
; ध्वनियों के मेल से बने सार्थक
वर्णसमूह को ‘शब्द’ कहते हैं
या
वर्णों या ध्वनियों के सार्थक मेल को ‘शब्द’ कहते हैं।

उदाहरण के लिए :

क + ल + म = कलम (Pen)
क + म + ल = कमल (Lotus)

उपर्युक्त सभी शब्दों का कोई न कोई अर्थ है। अत:
वे सभी शब्द हैं। जैसे : सोहन, खीर, मीरा, खेलता,
शतरंज इत्यादि।

Note : यहां शब्द अपने आप में स्वतंत्र होते
हैं.


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शब्द और पद में अंतर |
Shabd aur padd me antar

जब कोई शब्द स्वतंत्र न रहकर व्याकरण के नियमों
में बंध जाता है
, तब वह शब्द ‘पद’ बन जाता है। दूसरे
शब्दों में अगर हम कहें कि जब अर्थपूर्ण शब्द का प्रयोग वाक्य में किया जाता है
,
तो उस शब्द को पद कहते हैं। अब यह केवल शब्द नहीं रह जाता है बल्कि
यह शब्द वाक्य में लिंग
, वचन, सर्वनाम,
क्रिया, विशेषण इत्यादि दर्शाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वाक्य में प्रयुक्त शब्द ही
‘पद’है जो कारक
, वचन, लिंग,
पुरुष इत्यादि के नियमों में बंधकर ‘पद’बन जाता है।

उदाहरण के लिए :

राम आम खा रहा है।…..इस में राम, आम,
खा रहा हैये सभी पद है।


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शब्द के भेद | Shabd ke Bhed

अर्थ, प्रयोग, उत्पत्ति, और व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द के
कई भेद है। इनका वर्णन निम्न प्रकार है-

 

(1) अर्थ की दृष्टि से शब्द-भेद

  1. साथर्क शब्द
  2. निरर्थक शब्द

(i) सार्थक शब्द :- जिस वर्ण समूह का स्पष्ट रूप से कोई अर्थ निकले, उसे सार्थक शब्दकहते
है।

जैसे- कमल, खटमल, रोटी,
सेव आदि।

(ii) निरर्थक :- जिस वर्ण समूह का कोई अर्थ न निकले, उसे
निरर्थक शब्द कहते है।

जैसे- राटी, विठा, चीं,
वाना, वोती आदि।

सार्थक शब्दों के अर्थ होते है और निरर्थक
शब्दों के अर्थ नहीं होते। जैसे-
पानीसार्थक
शब्द है और
नीपानिरर्थक शब्द,
क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं।


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(2) प्रयोग की दृष्टि से शब्द-भेद

शब्दों के सार्थक मेल से वाक्यों की रचना होती
है। वाक्यों के मेल से भाषा बनती है। शब्द भाषा की प्राणवायु होते हैं। वाक्यों
में शब्दों का प्रयोग किस रूप में किया जाता है
, इस
आधार पर हम शब्दों को दो वर्गों में बाँटते हैं:

  1. विकारी शब्द
  2. अविकारी शब्द

 

(i) विकारी शब्द :- जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक के अनुसार परिवर्तन का विकार आता है, उन्हें
विकारी शब्द कहते है। 
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- 

विकार यानी परिवर्तन। वे शब्द जिनमें लिंग,
वचन, कारक आदि के कारण विकार (परिवर्तन) आ
जाता है
, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं।

जैसे- 

क. लिंग- लड़का पढ़ता है || लड़की पढ़ती है।

ख. वचन- लड़का पढ़ता है || लड़के
पढ़ते है।

ग. कारक- लड़का पढता है ||
लड़के को पढ़ने दो।

विकारी शब्द चार प्रकार के होते है-

  • (i) संज्ञा (noun) 
  • (ii) सर्वनाम (pronoun) 
  • (iii) विशेषण (adjective) 
  • (iv) क्रिया (verb)

 

(ii) अविकारी शब्द :-जिन शब्दों के रूप में कोई परिवर्तन नही होता, उन्हें
अविकारी शब्द कहते है।
 दूसरे शब्दों में- अ +
विकारी यानी जिनमें परिवर्तन न हो। ऐसे शब्द जिनमें लिंग
, वचन,
कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता, अविकारी
शब्द कहलाते हैं।

जैसे– परन्तु, तथा,
यदि, धीरे-धीरे, अधिक
आदि।

अविकारी शब्द भी चार प्रकार के होते है-


  • (i) क्रिया-विशेषण (Adverb)

  • (ii) सम्बन्ध बोधक (Preposition)

  • (iii) समुच्चय बोधक(Conjunction)

  • (iv) विस्मयादि बोधक(Interjection)

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(3) उत्पत्ति की दृष्टि से शब्द के भेद

उत्पत्ति के आधार पर शब्द के पांच भेद होते हैं

  1. तत्सम शब्द
  2. तद्भव शब्द
  3. देशज शब्द
  4. विदेशी शब्द
  5. शंकर शब्द

(i) तत्सम शब्द

तत्सम शब्द का शाब्दिक अर्थ है – तत् (उसके) +
सम (समान) अर्थात उसके समान। मतलब संस्कृत भाषा के ऐसे शब्द जिनका प्रयोग हिंदी
भाषा में ज्यों का त्यों किया जाता है उन शब्दों को तत्सम शब्द कहा जाता है।

उदाहरण के लिए : पुष्प,
पुस्तक, पृथ्वी, मृत्यु,
कवि, माता, विद्या,
नदी, फल, आदि।


(ii) तद्भव शब्द

तत्सम के बदले हुए रुप को तद्भव कहते हैं। आसान
शब्दों में कह तों..ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई थी लेकिन वो रूप
बदलकर हिन्दी में आ गए हों
, उसे तत्सम शब्द कहते हैं।

उदाहरण के लिए :  अग्नि —-> आग,
कार्य —> काम, हस्त
—-
> हाथ

 

(iii) देशज शब्द

जो शब्द देश के अलग-अलग हिस्सों से हिंदी में
आए हैं
, उन शब्दों को देशज शब्द कहा जाता है। ये शब्द
स्थानीय बोलियों से उत्पन्न होते हैं और उसके बाद परिस्थिति व आवश्यकतानुसार
हिन्दी में जुड़ जाते हैं तथा हिंदी का ही भाग बन जाते हैं।

उदाहरण के लिए : पेट,
डिबिया, लोटा, पगड़ी,
इडली, डोसा, समोसा,
गुलाबजामुन, लड्डु, खटखटाना,
झाड़ू, खिड़की आदि।


(iv) विदेशी शब्द

ऐसे शब्द जो भारत से बाहर के देशों की भाषाओं
से हैं लेकिन ज्यों के त्यों (बिना किसी बदलाव के) हिन्दी में प्रयुक्त हो गए
,
वे शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं। ये विदेशी शब्द उर्दू, अरबी, फारसी, अंग्रेजी, पुर्तगाली,
तुर्की, फ्रांसीसी, ग्रीक
आदि भाषाओं से हिंदी में आए हैं।

उदाहरण के तौर पर देखें तो…

अंग्रेजी – कॉलेज,
पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन,
डॉक्टर, लैटरबक्स, साइकिल
आदि।

फारसी – अनार,
चश्मा, जमींदार, दुकान,
दरबार, नमक, बीमार,
रूमाल, आदमी, आदि।

पुर्तगाली – अचार,
कारतूस, गमला, चाबी,
तौलिया, साबुन, कॉफी आदि।

फ्रांसीसी – पुलिस,
कार्टून, इंजीनियर, बिगुल
आदि।

चीनी – तूफान,
लीची, चाय, पटाखा
आदि।
 

यूनानी – टेलीफोन,
टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा
आदि।

जापानी – रिक्शा
आदि।

अरबी – औलाद,
अमीर, कलम, कानून,
खत, फकीर, रिश्वत,
औरत, कैदी, गरीब
आदि।

तुर्की कैंची,
चाकू, तोप, बारूद,
लाश, दारोगा, बहादुर
आदि।


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4. रचना (बनावट) के आधार पर शब्द के भेद

रचना के आधार पर शब्द के तीन भेद होते हैं

  1. रूढ़ शब्द
  2. यौगिक शब्द
  3. योगरूढ़ शब्द

(i) रूढ़ शब्द :

ऐसे शब्द जो किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं
लेकिन अगर उनके टुकड़े कर दिए जाएँ तो निरर्थक हो जाते हैं। ऐसे शब्दों को रूढ़ शब्द
कहते हैं। 

जैसे: जल, कल, फल
आदि। जल
, कल, फल एक निश्चित
अर्थ प्रकट करते हैं। लेकिन अगर ज और ल को
,
और ल को
, फ और ल को अलग- अलग कर दिया जाये तो इनका कोई
अर्थ नहीं रह जायेगा।


(ii) यौगिक शब्द

दो या दो से अधिक शब्दों के योग से बनने वाले
शब्दों को यौगिक शब्द कहते हैं। किन्तु वे दोनों ही शब्द ऐसे होने चाहिए जो सार्थक
हों यानी दोनों शब्दों का अपना-अपना अर्थ भी होना चाहिए। यौगिक शब्दों की यह एक
महत्पूर्ण विशेषता है कि इसके खंड (टूकडे) करने पर भी उन खंडो के अर्थ निकलते हैं।

उदाहरण के लिए –

क. शीशमहल = शीश + महल

ख. स्वदेश = स्व + देश 

ग. देवालय = देव + आलय

 

(iii) योगरूढ़ शब्द

ऐसे शब्द जो किन्हीं दो शब्द के योग से बने हों
एवं बनने पर किसी विशेष अर्थ का बोध कराते हैं
, वे
शब्द योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं।
 

उदाहरण के लिए –

क. नीलकंठ = नीले कंठ वाला अर्थात शिव भगवान

ख. पंकज = कीचड़ में उत्पन्न होने वाला अर्थात
कमल

ग. दशानन = दस मुख वाला अर्थात रावण आदि।


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Ranjan Gupta

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