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Zakir Khan की सभी कविताएं | Zakir khan poetry collections

By Ranjan Gupta

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Zakir Khan की सभी कविताएं | Zakir khan poetry collections

जाकिर खान सिर्फ एक स्टैंड-अप कॉमेडियन ही नहीं, बल्कि गहरे भावनात्मक कवि भी हैं. Zakir Khan poems जीवन के उन पहलुओं को छूती हैं, जिनसे हर इंसान कभी न कभी गुजरता है. चाहे ‘मैं शून्य पे सवार हूं’ में आत्मबल और संघर्ष की बात हो, या ‘मेरा सब बुरा भी कहना’ में अपनी कमियों और अच्छाइयों का खुला इजहार, Zakir Khan poetry collections दिल को छू जाती है. वहीं ‘ऐसे बुरे फंसे कि नानी याद आ गई’ जैसी Zakir Khan hindi poetry मां के प्रति मोहब्बत और तडप को इतनी सादगी से बयां करती हैं कि पाठक की आंखें नम हो जाती हैं. यही वजह है कि जाकिर खान की कविताएं सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि भावनाओं का अनुभव बन जाती हैं.

मैं शून्य पे सवार हूँ…| mai sunya par sawar hun zakir khan

यह कविता आत्मबल और संघर्ष की शक्ति को दर्शाती है. इसमें कवि ने बताया है कि मुश्किलों और अंधेरों से लड़ने के लिए भीतर का विश्वास ही सबसे बड़ा सहारा है.

Zakir Khan की सभी कविताएं | Zakir khan poetry collections
मैं शून्य पे सवार हूँ
बेअदब सा मैं खुमार हूँ
अब मुश्किलों से क्या डरूं
मैं खुद कहर हज़ार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ

उंच-नीच से परे
मजाल आँख में भरे
मैं लड़ रहा हूँ रात से
मशाल हाथ में लिए
न सूर्य मेरे साथ है
तो क्या नयी ये बात है
वो शाम होता ढल गया
वो रात से था डर गया

मैं जुगनुओं का यार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
भावनाएं मर चुकीं
संवेदनाएं खत्म हैं
अब दर्द से क्या डरूं
ज़िन्दगी ही ज़ख्म है
मैं बीच रह की मात हूँ
बेजान-स्याह रात हूँ
मैं काली का श्रृंगार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ

हूँ राम का सा तेज मैं
लंकापति सा ज्ञान हूँ
किस की करूं आराधना
सब से जो मैं महान हूँ
ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ
मैं जल-प्रवाह निहार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ

Zakir Khan poem mai soonya pe sawaar hun

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मेरा सब बुरा भी केहना पर अच्छा भी सब बताना | Zakir Khan poetry

इस रचना में कवि ने अपने जीवन की गलतियों और कमियों को स्वीकार करते हुए सच का सामना किया है. यह कविता बताती है कि इंसान की दास्तां उसकी अच्छाइयों के साथ-साथ बुराइयों से भी बनती है.

मेरा सब बुरा भी केहना
पर अच्छा भी सब बताना।
मैं जाऊँ दुनिया से तो सबको
मेरी दास्ताँ सुनना।

ये भी बताना कि कैसे
समंदर जीतने से पहले
मैं ना जाने कितनी छोटी छोटी
नदियों से हज़ारों बार हारा

वो घर, वो जमीन दिखाना
कोई मग़रूर भी कहेगा तो तुम
उसको शुरुआत मेरी बताना
बताना सफ़र की दुश्वारियां मेरे
ताकी कोई जो मेरी जैसी ज़मीन से आये
उसके लिए नदी की हार छोटी ही रहे

समंदर जीतने का ख्वाब
उसके दिल और दिमाग से न जाए

पर उनसे मेरी गलतियाँ भी मत छुपाना
कोई पूछे तो बता देना कि
मैं किस दर्जे का नकारा था
केह देना कि झूठा था मैं
बताना कि कैसे
जरूरत पर काम ना आ सका
इन्तेक़ाम सारे पुरे किए
पर ईश्क़ अधूरा रहना दिया

बता देना सबको कि
मैं मतलबी बड़ा था
हर बड़े मुक़ाम पे
तन्हाई में खडा था

मेरा सब बुरा भी केहना
पर अच्छा भी सब बताना
मैं जाऊँ दुनिया से तो सबको
मेरी दास्ताँ सुनाना।।

Zakir Khan poem in hindi

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मम्मी, तेरी मम्मी की सारी कहानी याद आ गई जाकिर खान की कविता

यह कविता लॉकडाउन के दिनों में माँ के हाथ के खाने और उसकी परवरिश की यादों को जीवंत करती है. इसमें हास्य और भावुकता दोनों का सुंदर मिश्रण है.

Zakir Khan की सभी कविताएं | Zakir khan poetry collections
ऐसे बुरे फंसे कि नानी याद आ गई,
मम्मी, तेरी मम्मी की सारी कहानी याद आ गई।

अब देख ना, पराये शहर में बैठकर बस, सांस लिए जा रहे हैं,
मम्मी यार तेरे खाने के सपने आजकल दिन-रात आ रहे हैं।

अब खुद से बनाना पड़ता है ना तो सोचता हूं,
कोई 'दो मिनट आती हूं' बोलकर किचन में ऐसा क्या 'टोना' करने जाती थी तू।

मसाले थे... घी की खुशबू थी... या तेरे हाथों का जादू,
पत्थर भी प्लेट में ले के आती थी न तो 'सोना' लगती थी।

अब देख तेरी परवरिश ने क्या हाल कर दिया,
इस 'लॉकडाउन' ने तो तेरे राजा बेटा को निढाल कर दिया।

यार... बर्तन मांजना क्यूं नहीं सिखाया मां तूने?
ये पंखा भी गंदा होता है... ये राज क्यूं नहीं बताया मां तूने?

हर रोज नए तरह से किचन में आग लगा लेते हैं,
हाथ पकड़ के रोटी बेलना क्यूं नहीं सिखाया मां तूने?

कभी दाल जलाते हैं... कभी सैंडविच बनाते हैं,
सोचता हूं, कितने खुशनसीब हैं वो लोग।

जो अभी भी इन दिनों में अपनी मां के हाथ का खाते हैं,
बताना चाहिए था ना... कि ठंडी रोटियों पर घी फैलता नहीं है।

बताना चाहिए था ना... कि चार दिन पुराना खाना... ये बदन झेलता नहीं है,
तेरे खाने की खुशबू ना, रह... रहकर आती है।

तुझे कभी थैंक यू नहीं बोला ना... ये बात बहुत सताती है।
तेरे हाथों में जादू है, दुनिया की बेस्ट इंसान तू ही है...

कभी फोन पर तो बोल नहीं पाया... पर हां...
जमीन पर भगवान ना... तू ही है।

ऐसे बुरे फंसे हैं ना... कि नानी याद आ गई।
मम्मी! तेरी मम्मी की ना...। सारी कहानी याद आ गई...!

Zakir khan poem on mother in hindi

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Ranjan Gupta

मैं इस वेबसाइट का ऑनर हूं। कविताएं मेरे शौक का एक हिस्सा है जिसे मैनें 2019 में शुरुआत की थी। अब यह उससे काफी बढ़कर है। आपका सहयोग हमें हमेशा मजबूती देता आया है। गुजारिश है कि इसे बनाए रखे।

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