बॉलीवुड अभिनेता और कवि Siddhant Chaturvedi अपने अभिनय के साथ-साथ अपनी गहरी कविताओं के लिए भी जाने जाते हैं. उनकी रचना “क्या लेके आए थे… जो खो गया?” सिर्फ़ शब्दों का मेल नहीं, बल्कि जीवन की वास्तविकता पर किया गया आत्ममंथन है. यह कविता हमें याद दिलाती है कि हमारी परेशानियां और खोए हुए अवसर उतने महत्वपूर्ण नहीं जितना जीवन का सार है. सिद्धांत ने सरल शब्दों में एक गहरी बात कही है, जो हर किसी के दिल को छू जाती है और इंसान को सोचने पर मजबूर कर देती है.
क्या लेके आए थे… जो खो गया? by Siddhant Chaturvedi
क्या लेके आए थे... जो खो गया?
यूं तो हजार ख्वाहिशें बिकती हैं बाजार में...
बस एक कलम है,
जो खो गई इस 'ऑटो-करेक्ट' समाज में...
एक दो पन्ने भी खोए हैं...
जिसपे सपने लिखे-मिटाए थे,
'कोई देख ना ले' के लाज में...
वो 'मिसफिट' सी शर्ट जो अलमारी में पड़ी रह गई...
उस एक दिन का इंतज़ार है...
यहीं तो कुछ अपना पुराना था, जो खो गया...
यूं तो सारी ख्वाहिशें खत्म रखी हैं,
आज रिप्ड जीन्स की जेबों में...
सपने जो शर्मिंदा करते थे पन्नों पे किसी दिन,
आज छपते हैं अखबारों में...।
Siddhant chaturvedi poem kya leke aaye the jo kho gaya
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