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Alankar | अलंकार की परिभाषा, भेद व उदाहरण

By Ranjan Gupta

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Alankar | अलंकार की परिभाषा, भेद व उदाहरण

Alankar | अलंकार की परिभाषा, भेद व उदाहरण: अलंकार (Alankar) का अर्थ है; अलंकृत करना या सजाना। कहा गया है – ‘अलंकरोति इति अलंकारः’ (जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।) अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है; अलम + कार, जहां अलम का अर्थ होता है ‘आभूषण’ जिस तरह एक नारी अपनी सुंदरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों को प्रयोग में लाती है उसी प्रकार भाषा को सुंदर बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है। अर्थात जो शब्द काव्य की सुंदरता को बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहा जाता है।

अलंकार की परिभाषा | Alankar ki paribhasha

अलंकार एक कविता या पद्य की सौन्दर्यता और भाषा की रूपरेखा में सुधार करने का एक शास्त्रीय उपाय है। इसका मुख्य उद्देश्य काव्य रचना को और भी सुंदर और अर्थपूर्ण बनाना है। अलंकार काव्यशास्त्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है और कविता या पद्य की शृंगारिक, भक्तिपूर्ण, रसिक या अन्य भावनाओं को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए प्रयोग होता है।

उदाहरण – हनुमान की पूंछ में लग न पाई आग, लंका सारी जल गई, गए निशाचर भाग। – अतिशयोक्ति

अलंकार के भेद | Alankar ke Bhed

अलंकार के चार भेद होते हैं-

  • शब्दालंकार
  • अर्थालंकार
  • उभयालंकार और
  • पाश्चात्य अलंकार

ये भी पढ़ें : Kavya | काव्य का अर्थ, परिभाषा व लक्षण

1. शब्दालंकार – Sabdalankar

काव्य में शब्दगत चमत्कार को शब्दालंकार कहते हैं। शब्दालंकार मुख्य रुप से सात हैं, जो निम्न प्रकार हैं- अनुप्रास, यमक, श्लेष, आदि।

(1) अनुप्रास अलंकार | Anupras alankar

वर्णो की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार होता है। जैसे- “जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।जय कपीश तिहुँ लोक उजागर”।।

यहाँ दोनों पदों के अन्त में ‘आगर’ की आवृत्ति हुई है, अत: अन्त्यानुप्रास अलंकार है।

(2) यमक अलंकार | Yamak alankar

जहाँ एक शब्द या शब्द समूह अनेक बार आए किन्तु उनका अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। जैसे-“पूत सपूत, तो क्यों धन संचय? पूत कपूत, तो क्यों धन संचय”?

यहाँ प्रथम और द्वितीय पंक्तियों में एक ही अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग हुआ, है परन्तु प्रथम और द्वितीय पंक्ति में अन्तर स्पष्ट है, अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है।

(3) श्लेष अलंकार | Shlesh alankar

जहाँ एक ही शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है; जैसे-“रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। पानी गएन ऊबरै, मोती मानुष चून”।।

यहाँ ‘पानी’ के तीन अर्थ हैं—’कान्ति’, ‘आत्मसम्मान’ और ‘जल’, अत: यहाँ श्लेष अलंकार है।

नोट : शब्दालंकार के और भी भेद एवं उपभेद हैं… हमने सिर्फ प्रमुख भेद के बारे में जानकारी दी है जो काफी ज्यादा प्रयोग किये जाते हैं।

और भी पढ़ें :  Varn Vichar | वर्ण की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण

2. अर्थालंकार – Arthalankar

साहित्य मे जो अर्थगत चमत्कार को अर्थालंकार कहते है। अर्थात् जहाँ पर अर्थ के कारण किसी काव्य के सौन्दर्य में वृद्धि होती है, वहाँ अर्थालंकार होता है।

(1)  उपमा अलंकार | Upma alankar

उपमा अर्थात् तुलना या समानता; उपमा में उपमेय की तुलना उपमान से गुण, धर्म या क्रिया के आधार पर की जाती है।

उपमा के चार अंग (तत्त्व) हैं-

अ. उपमेय– वह शब्द जिसकी उपमा दी जाए; जैसे- उसका मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है। वाक्य में ‘मुख’ की चन्द्रमा से समानता बताई गई है, अत: मुख उपमेय है।

ब. उपमान– जिससे उपमेय की समानता या तुलना की जाती है उसे उपमान कहते हैं; जैसे-उपमेय (मुख) की समानता चन्द्रमा से की गई है, अतः चन्द्रमा उपमान है।

स. वाचक शब्द– जब उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है तब जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है उसे वाचक शब्द कहा जाता है।

द. साधारण धर्म– दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के लिए जब किसी ऐसे गुण या धर्म की मदद ली जाती है जो दोनों में वर्तमान स्थिती में हो उसी गुण या धर्म को साधारण धर्म कहा जाता है। जैसे:- नीलिमा चंद्रमा जैसी सुंदर है..

(2) रुपक अलंकार |  Rupak alankar

जहाँ पर उपमेय और उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे वहाँ रूपक अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच के भेद को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है वहाँ पर रूपक अलंकार होता है।

जैसे:- “उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग। विगसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन भ्रंग।।”

(3) उत्प्रेक्षा अलंकार | Utpreksha alankar

जहाँ पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए। अथार्त जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। अगर किसी पंक्ति में मनु, जनु, मेरे जानते, मनहु, मानो, निश्चय, ईव आदि आते हैं वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

 जैसे:- “सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल। बाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।।”

(4) अतिशयोक्ति अलंकार |  Atishyokti alankar

जहाँ किसी बात को बहुत अधिक बढा-चढ़ा कर लोक सीमा के बाहर की बात कही जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे:- “आगे नदियाँ पड़ी अपार, घोड़ा उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।”

 यहाँ सोचने की क्रिया की पूर्ति होने से पहले ही घोड़े का नदी के पार पहुँचना लोक—सीमा का अतिक्रमण है, अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।

नोट : अर्थालंकार के और भी भेद एवं उपभेद हैं… हमने सिर्फ प्रमुख भेद के बारे में जानकारी दी है जो काफी ज्यादा प्रयोग किये जाते हैं।

और भी पढ़ें : Muktak Kavya | मुक्तक काव्य; परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण

निष्कर्ष

तो आपने पढ़ा कि Alankar | अलंकार की परिभाषा क्या है? अलंकार के कितने भेद होते हैं? अलंकार के उदाहरण इत्यादी। आपको ये जानकारी कैसी लगी, आप हमें कमेंट कर जरुर बताएं। आप हमारी दूसरी साइट Ratingswala को भी विजिट कर सकते हैं।

FAQS

अलंकार किसे कहते हैं ?

अलंकरोति इति अलंकारः अर्थात जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।

अलंकार के कितने भेद होते हैं ?

अलंकार के मुख्य रुप से तीन भेद होते हैं; शब्दालंकार, अर्थालंकार, उभयालंकार

अलंकार किन दो शब्दों से मिलकर बना होता है ?

अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है; अलम + कार,जहां अलम का अर्थ होता है ‘आभूषण’

अतिशयोक्ति अलंकार का उदारहण दें.

आगे नदियाँ पड़ी अपार, घोड़ा उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।

Ranjan Gupta

मैं इस वेबसाइट का ऑनर हूं। कविताएं मेरे शौक का एक हिस्सा है जिसे मैनें 2019 में शुरुआत की थी। अब यह उससे काफी बढ़कर है। आपका सहयोग हमें हमेशा मजबूती देता आया है। गुजारिश है कि इसे बनाए रखे।

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