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नलिन कुमार ठाकुर की कविताएं | Nalin Kumar Thakur Poems | Hindi Kavita

By Ranjan Gupta

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Nalin Kumar Thakur Poems | Hindi Kavita

Nalin Kumar Thakur Poems, Hindi Kavita: यहां हमारे कवि नलिन कुमार ठाकुर जी की कविताएं हैं जो उन्होनें हमें भेजी है। उम्मीद है कि यहां दी गई कविताएं आपको पसंद आएगी। अगर अच्छी लगे तो आप हमें कमेंट कर जरुर बताइएगा।

फितरत | Nalin Kumar Thakur Poems

फ़ितरत
अक्सर मैं सोचता हूँ,
ऐसा होता तो कैसा होता?
वैसा होता तो कैसा होता?
ये नहीं होता तो
क्या होता?
ये इस तरह नहीं
होता तो
किस तरह होता?

यदि ख्वाहिशों की दुनिया होती!
तो शायद,
ऐसा ही होता,
वैसा ही होता.
जो नहीं चाहता,
वो नहीं होता.
जिस तरह चाहता,
उस तरह होता.
जैसा चाहता,
वैसा होता.

फिर भी इंसान की फ़ितरत है कि,
यदि सब कुछ वैसा ही होता,
जैसा मैंने सोचा था,
तो शायद मैं फिर ये चाहता कि,
जो मैं नहीं सोच पाया,
वो होता तो कैसा होता?
जो नहीं हुआ
वो होता
तो कैसा होता?

या फिर,

मैं ये सोचता कि,
सब कुछ मेरी मर्जी
से क्यूँ हुआ?
यदि,
ऐसा ना होता,
तो कैसा होता?

नलिन कुमार ठाकुर

यह कविता इस बारे में है कि कैसे मानव स्वभाव (फ़ितरत) हर चीज़ से असंतुष्ट है। वह कभी संतुष्ट नहीं होगा और भले ही चीज़ें उसकी इच्छा के अनुसार हों, वह चीज़ों को अलग तरह से चाहेगा।


अकेला मैं, कल आज और कल

अकेला मैं, कल आज और कल
मैं अकेला हूँ।
मेरा अकेलापन,
मेरी ताक़त नहीं,
मेरी कमजोरी है।

अपनी सतही बातें,
मैं लोगों को,
समझा पाता नहीं,
उनकी गंभीर बातें,
मैं समझ पाता नहीं।
मैं अलग,
पर जाता हूँ,
या अलग,
कर दिया जाता हूँ।
और,
मैं अकेला रह जाता हूं।
मेरा अकेलापन,
मेरी ताक़त नहीं,
मेरी कमजोरी है।

मैं लोगों के साथ
दौड़ पाता नहीं,
मैं उनकी तेजी
सम्भाल पाता नहीं।
लोग मेरे धीमेपन
को सह पाते नहीं।
मैं पीछे छूट जाता हूँ,
या छोड़ दिया जाता हूँ।
और,
मैं अकेला रह जाता हूँ।
मेरा अकेलापन,
मेरी ताक़त नहीं,
मेरी कमजोरी है।

जब भी अपने आप
को,
किसी दोराहे पे पाया,
किस ओर मुड़ूँ,
ये चुन नहीं पाया।
जिस तरफ़ भी मैं मुड़ा,
वो रास्ता कहीं जाता नहीं,
लौटने के सिवा,
कोई रास्ता नहीं।
और,
मैं अकेला रह जाता हूँ।
मेरा अकेलापन,
मेरी ताक़त नहीं,
मेरी कमजोरी है।

इन सन्नाटों के बीच,
मैं ख़ुद से बात करता हूँ।
ख़ुद से ही सवाल,
और ख़ुद को ही जवाब देता हूँ.
हमराही की तरह,
अपने साये को
साथ रखता हूँ।
मेरी दुनिया,
मेरे ख्यालों में है,
और उन ख्यालों के,
आशियाने में,
मैं रहता हूँ।

हाँ,
मैं अकेला हूँ।

अकेलापन मेरी ताक़त नहीं,
अब मेरी आदत है।

– नलिन कुमार ठाकुर

यह कविता अकेलेपन के बारे में है, बल्कि अकेले रहने वालों के बारे में है। एक बच्चे का स्वभाव, आमतौर पर, अकेला नहीं होता। फिर उसे अकेला क्यों बनाता है? यह कविता बताती है कि परिस्थितिवश शुरू होने वाली चीजें कैसे दूसरी प्रकृति बन जाती हैं।


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Ranjan Gupta

मैं इस वेबसाइट का ऑनर हूं। कविताएं मेरे शौक का एक हिस्सा है जिसे मैनें 2019 में शुरुआत की थी। अब यह उससे काफी बढ़कर है। आपका सहयोग हमें हमेशा मजबूती देता आया है। गुजारिश है कि इसे बनाए रखे।

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