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जिंदगी और इंसानियत पर कविता | Zindagi aur Insaniyat par kavita

By Ranjan Gupta

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Zindagi aur Insaniyat par kavita:

Zindagi aur Insaniyat par kavita: हिंदी में एक कहावत है कि जैसा वर्ताव हम दूसरों से करते हैं, वैसा ही वर्ताव हमारे साथ होता है। अगर उसकी पहचतान करनी है तो जो आपको स्व आत्मवत् आचरण करता दिखाई दे समझ लेना कि यह इंसानियत है। हमें इसके लिए सबसे पहले स्वार्थ को मिटाना होता है। जिंदगी हमें बहुत कुछ सिखाती है। ऐसे में हमारे कवियों ने इस इंसानियत पर कविता लिखी है जो जीवन के हर क्षण में शाश्वत है। तो आइए पढते हैं Insaniyat par kavita

धुंधले क्षितिज | Zindagi par kavita

जगमगाते शहरों ने चाँदनी छीन ली,
जिसको देखकर कवियों ने कल्पनाओं कि छलाँग लगाई,
इंसान के क़दमों ने वो चाँद छीन ली |

जिस ज़मीन ने इंसान को ज़िंदा रखा,
इंसानियत की कमी ने वो ज़मीन छीन ली |

दुनिया ने बहुत तरक्की की है,
फ़ासलों को कम किया पर नज़दीकियां छीन ली |

कुछ इस कदर खोया इतिहास के पन्नों में कि उसने हमारी आज छीन ली,
भविष्य की चिंता ने कुछ इस कदर घेरा कि उसने हमारी चैन छीन ली,
और इतिहास और भविष्य दोनों ने मिलके,
हमसे वर्तमान की पहचान छीन ली |

हम दौड़ते रहे मंजिल की ओर पर मंजिल तो मरीचिका थी,
वहाँ पहुँच के पाया की उस दौड़ ने पाने की चाहत छीन ली ।

हम तो निकले थे सारी दुनिया को अपनाने,
मगर इस सफ़र ने कहीं हमारी परिवार छीन ली |

अब तो आलम ये है कि,
ना मंजिल मिला, ना ही कारवाँ बना,
आत्मविश्वास गलतफहमियों का शिकार बनती रही,
और हमें पता भी ना चला कि कहाँ कब किसने हमारी नींद छीन ली |

नलिन ठाकुर


अकेला है तू | जीवन पर कविता

हर कदम पे अकेला है तू,
तुझे कोई ना मिल पाएगा।
वक्त का तकाजा है,
तू और बिखर जाएगा।

जीना तो इस पल में जी,
वरना मौत तो हर पल में आएगा।
कर कोशिश कुछ करने की,
कुछ लड़ने की, कुछ सहने की।

बीता यह लम्हा तो तू और गिर जाएगा,
हिम्मत से आगे बढ़,
तू अपनी मंज़िल पाएगा।
रुक गया जो मंज़िल से पहले,
हर साथ खो जाएगा।

हर कदम पे अकेला है तू,
तुझे कोई ना मिल पाएगा|

समरजीत सौरभ


जिंदगी कभी रूठ सी जाती है | Zindagi aur Insaniyat par kavita

Zindagi aur Insaniyat par kavita

ज़िंदगी कभी रूठ सी जाती है,
मौत को छूकर निकल जाती है।
होता है वही, जो होना होता है,
पर ज़िंदगी थोड़ी सी मुस्कुराती है।

हैं तकलीफ़ में हम यहाँ,
तकलीफ़ों में भी जीना सिखलाती है।
ज़िंदगी कभी रूठ सी जाती है।

जिस राह पर हम चल रहे हैं यहाँ,
उसी राह पर हमें चलना सिखलाती है।
ज़िंदगी कभी रूठ सी जाती है।

है वक़्त यहाँ किसके पास,
फिर भी ज़िंदगी हमें वक़्त पर संभलना सिखलाती है।
ज़िंदगी कभी रूठ सी जाती है।

समरजीत सौरभ


दो कौड़ी का इंसान हूं मैं | Insaniyat par kavita

दो कौड़ी का इंसान हूं मैं
और लोग मुझे अच्छा बोलते है
ये तो उनकी ही अच्छाई है
वरना मुझमें कौन सी नहीं बुराई है

और जो कोई निमरता नहीं है
असल में मेरी यही सच्चाई है
यह तो मेरी रंगीली परछाई है
इसने मेरे ऐबों की गठरी छिपाई है

काश कुछ अच्छा काम मैं कर पाऊं
किसी के काम आ सकूं, किसी का दुख दर्द मैं घटा पाऊं
इससे पहले की दुनिया से विदा हो जाऊं
किसी के होठों पर मुस्कुराहट ला पाऊं

क्योंकि और कुछ साथ न जाए सिवाए आपके कर्म
इसलिए रखो शुद्ध साफ विचार और अपनाएं सच्चा धर्म
पाप से दूर रहो, मन में रखो शर्म, जीवन का यही है मरम

गैरी सिंह


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Ranjan Gupta

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