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किसका था कसूर | iran-israel war par kavita

By Kaashi

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iran-israel war par kavita

iran-israel war par kavita: युद्ध एक ऐसा शब्द है जो अपने आप में विध्वंस, पीड़ा और अनगिनत आँसुओं को समेटे हुए है। जब बात ईरान-इज़राइल जैसे संघर्षों की आती है, तो यह केवल देशों के बीच का टकराव नहीं रहता, बल्कि यह उन आम इंसानों की ज़िंदगी को भी लील जाता है जिनका राजनीति से कोई सीधा सरोकार नहीं होता। इस अदृश्य शत्रु के चंगुल में फँसकर अनगिनत निर्दोष जानें चली जाती हैं, और मानवता कराह उठती है।

ऐसे में, iran-israel war par kavita केवल शब्दों का एक संग्रह नहीं, बल्कि उन दबी हुई चीखों, उन बिखरे हुए सपनों और उस खोई हुई शांति की एक मार्मिक पुकार बन जाती है। यह कविता उन सभी लोगों के लिए है जो इस अग्निपरीक्षा से गुज़र रहे हैं, और उन सभी के लिए जो शांति की उम्मीद अभी भी संजोए हुए हैं।

किसका था कसूर | iran-israel war par kavita

लहू से लथपथ हर गली, हर कूचा,
जहाँ इंसानियत सिसक रही है, मौन है।
ईरान-इज़राइल की ये कैसी जंग,
जहाँ हर साँस पर मौत का ही मौन है।

बच्चों की किलकारी, अब नहीं गूँजती,
माओं की ममता, अब बस रोती है।
बाप का आँचल, अब सूना पड़ा है,
घरों में उदासी, हर पल सोती है।

किसका था कसूर, किसे क्या पता है?
सियासत की चालें, ये कैसी अदा है?
धरती की कोख से, उगती है नफरत,
प्रेम की बगिया, क्यों सूनी पड़ी है?

गोलियों की गूँज में, खोई वो हँसी,
बमों के धमाकों में, दबी वो ज़मीं।
अस्पतालों में बस, दर्द की आहटें,
हर आँख में बस, आँसुओं की कमी।

इतिहास गवाह है, ये युद्ध बेकार है,
किसी का नहीं कोई, यहाँ तो हार है।
अमन की राह पर, चलें आओ सब,
इंसानियत का यही, सच्चा प्यार है।

कब तक सहेंगे ये ज़ख्म गहरे,
कब तक ये लाशों के ढेर लगेंगे?
रब से यही अरदास, शांति मिले सबको,
नफरत के बादल, कब छँटेंगे?

आओ मिलकर फिर, हाथ बढ़ाएँ,
टूटे दिलों को फिर से जोड़ें।
युद्ध की अग्नि को, शांत करें हम,
प्रेम का दीपक फिर से जलाएँ।

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