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Lohri 2025: कब है लोहड़ी का त्योहार, जानें इसका महत्व, इतिहास और पारंपरिक गीत

By Ranjan Gupta

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Lohri 2025

Lohri 2025 date and time, History, Importance and Lohri Geet: लोहड़ी, एक पारंपरिक पंजाबी त्योहार है जो कृषि समुदाय के लिए खास महत्व रखता है। यह फसल कटाई के मौसम की शुरुआत को दर्शाता है और खासतौर पर गन्ने की फसल के लिए आभार व्यक्त किया जाता है। लोहड़ी को अक्सर ‘लोहड़ी’ या ‘लाल लोई’ के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ मनाया जाता है, जिससे दिन बड़े होते हैं और सर्दी का मौसम समाप्त होता है।

यह एक अवसर है परिवार और समुदाय के सदस्यों के साथ मिलकर खुशी मनाने और एक-दूसरे के साथ बंधन को मजबूत करने का। इस दिन लोग अलाव के आसपास बैठकर पारंपरिक लोक गीत गाते हैं, भंगड़ा और गिद्दा नृत्य करते हैं और तिल, गुड़ और गन्ने का आदान-प्रदान करते हैं।

लोहड़ी 2025 कब है? (Lohri 2025 date)

वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल मकर संक्रांति पर्व के एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।हर साल 13 जनवरी को लोहड़ी मनाई जाती है और इसके अगले दिन मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाएगा।

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लोहड़ी 2025 तारीख और समय (Lohri 2025 date and time)

लोहड़ी का त्योहार हर बार की तरह 13 जनवरी 2025 को है और इस बार लोहड़ी संक्रांति का क्षण 14 जनवरी की सुबह 9 बजकर 3 मिनट तक रहेगा। इसके बाद सूर्य देव मकर राशि में गोचर करेंगे।

Lohri 2025: कब है लोहड़ी का त्योहार, जानें इसका महत्व, इतिहास और पारंपरिक गीत

लोहड़ी क्यों मनाते है? (Lohri kyu manate hai)

लोहड़ी का पर्व शरद ऋतु के आखिर में आता है। इसके बाद से रात छोटी और दिन बड़े होने शुरू हो जाते हैं। किसानों के लिए यह पर्व बहुत खास माना जाता है। लोहड़ी का त्योहार हर साल फसल की कटाई के रूप में मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन लोग अपने घर के आगे आग जलाते हैं और उसमें गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक आदि डालते हैं।

साथ ही, आग की परिक्रमा कर अपने घर परिवार की सुख, समृद्धि के लिए कामना करते हैं। इस पर्व पर अच्छी फसल के लिए देवताओं से प्रार्थना की जाती है। वहीं, लोहड़ी के दिन सूर्य देव और अग्नि देव की पूजा की जाती है और अच्छी फसल का जश्न भी मनाते हैं।

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लोहड़ी का इतिहास | History of Lohri

कृषि विरासत और सांस्कृतिक परंपराओं से सुसज्जित लोहड़ी का पर्व मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तरी भारत में मनाया जाता है। लोहड़ी सर्दियों के अंत और गन्ना, गेहूं और सरसों जैसी फसलों की कटाई के मौसम का प्रतीक है। ऐतिहासिक रूप से, लोहड़ी दुल्ला भट्टी से जुड़ी हुई है जो एक महान पंजाबी नायक थे जिन्होंने अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी और लड़कियों को गुलामी से बचाया। समारोह के दौरान उनकी बहादुरी का सम्मान करते हुए गीत गाए जाते हैं।

इसके अलावा यह पर्व फसल के लिए सूर्य देव और प्रकृति को धन्यवाद देने हेतु मनाया जाता है। परिवार आग के चारों ओर इकट्ठा होते हैं, आभार व्यक्त करने और समृद्धि के लिए प्रार्थना करने के लिए तिल, गुड़ और अन्य चीजें चढ़ाते हैं।

लोहड़ी का महत्व | Importance of Lohri

लोहड़ी, खासकर किसानों के लिए एक अहम दिन होता है क्योंकि यह रबी की फसलों, विशेषकर गन्ने की कटाई का समय होता है। इस दिन एक बड़ा अलाव जलाया जाता है, जो पुरानी नकारात्मक ऊर्जा को जलाने और नई सकारात्मक ऊर्जा को स्वागत देने का प्रतीक होता है। इस दिन को किसान नए मौसम और नई फसलों के लिए आशीर्वाद के रूप में मनाते हैं।

लोहड़ी और होलिका का संबंध

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी और होलिका दोनों ही बहनें थी। इसमें से लोहड़ी अच्छी प्रवृत्ति की थी जबकि होलिका बुरा व्यवहार वाली थी। कहते हैं कि होलिका ​अग्नि में जलकर लोहड़ी की तरह ही अच्छी प्रवृति की हो गई।

Lohri 2025: कब है लोहड़ी का त्योहार, जानें इसका महत्व, इतिहास और पारंपरिक गीत

लोहड़ी का पारंपरिक गीत | Lohri Geet

लोहड़ी के गीतों में ऐतिहासिक नायक दुल्ला भट्टी का जिक्र होता है, जिसने मुगल काल में लड़कियों की शादी में मदद कर उन्हें समाज में इज्जत दिलाई। “सुंदर मुंदरिए हो” लोहड़ी का एक प्रसिद्ध गीत है, जिसमें समाज और संस्कृति के कई रंग देखने को मिलते हैं। 

सुंदर मुंदरिए हो!  
तेरा कौन विचारा हो?

दुल्ला भट्टी वाला हो!
दुल्ले ने धी ब्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो।

कुड़ी दे बोझे पाई हो,
कुड़ी दा लाल पटाका हो,
कुड़ी दा शालू पाटा हो।

शालू कौन समेटे हो?
चाचा गाली देसे हो,
चाचे चूरी कुट्टी हो।

जमींदारां लुट्टी हो,
जमींदारा सदाए हो,
गिन-गिन पोले लाए हो।

इक पोला घिस गया,
जमींदार वोट्टी लै के नस्स गया हो!

पा नी माई पाथी,
तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी।
हाथी उत्ते जौं,
तेरे पुत्त पोत्रे नौ!

नौंवां दी कमाई,
तेरी झोली विच पाई।
टेर नी माँ टेर नी,
लाल चरखा फेर नी!

बुड्ढी साँस लैंदी है,
उत्तों रात पैंदी है।
अंदर बट्टे ना खड़काओ,
सान्नू दूरों ना डराओ!

चारक दाने खिल्लां दे,
पाथी लैके हिल्लांगे।
कोठे उत्ते मोर,
सान्नू पाथी देके तोर!

कंडा कंडा नी लकड़ियो,
कंडा सी।
इस कंडे दे नाल कलीरा सी।

जुग जीवे नी भाबो,
तेरा वीरा नी।

पा माई पा,
काले कुत्ते नूं वी पा।
काला कुत्ता दवे वदाइयाँ,
तेरियां जीवन मझियाँ गाईयाँ।

मझियाँ गाईयाँ दित्ता दूध,
तेरे जीवन सके पुत्त।
सक्के पुत्तां दी वदाई,
वोटी छम-छम करदी आई।

साड़े पैरां हेठ रोड,
सानूं छेती-छेती तोर!
साड़े पैरां हेठ दहीं,
असीं मिलना वी नईं।
साड़े पैरां हेठ परात,
सानूं उत्तों पै गई रात!

लोहड़ी सम्बंधित रीति-रिवाज एवं परंपराएं

लोहड़ी पंजाब एवं हरियाणा का प्रसिद्ध त्यौहार है, लेकिन अब इस पर्व को देश के अन्य हिस्सों में भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन किसान ईश्वर के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं, जिससे फसल के उत्पादन में वृद्धि हो। इस दिन पंजाब के कुछ भागों में पतंगें उड़ाने का भी रिवाज है। लोहड़ी उत्सव के दौरान बच्चे घर-घर जाकर लोकगीत गाते हैं और लोग उन्हें मिठाई और पैसे देते हैं। 

ऐसी मान्यता है कि इस दिन बच्चों को खाली हाथ लौटाना उचित नहीं माना गया है, इसलिए उन्हें चीनी, गजक, गुड़, मूँगफली तथा मक्का आदि दिया जाता है, इसे ही लोहड़ी कहते है। इसके पश्चात संध्या के समय सभी लोग एकत्र होकर आग जलाते है और लोहड़ी को सभी में बांटेते हैं। संगीत और नृत्य के साथ लोहड़ी का जश्न मनाते हैं। रात को सरसों का साग,मक्के की रोटी और खीर आदि सांस्कृतिक भोजन को खाकर लोहड़ी की रात का लुत्फ़ लिया जाता है।

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निष्कर्ष

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FAQs – Lohri 2025

कब मनाई जाती है लोहड़ी का पर्व?

हर साल लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले यानी 13 जनवरी को मनाया जाता है।

लोहड़ी का धार्मिक महत्व क्या है?

पारंपारिक तौर पर देखें तो यह पर्व रबी फसल की कटाई से जुड़ा है। इस दिन रबी की फसल को भी आग में समर्पित किया जाता है। साथ ही अग्नि देव और सूर्य देव को धन्यवाद दिया जाता है। 

लोहड़ी 2025 का दिन और तारीख?

इस बार लोहड़ी संक्रांति का क्षण 14 जनवरी की सुबह 9 बजकर 3 मिनट तक रहेगा। इसके बाद सूर्य देव मकर राशि में गोचर करेंगे।

Ranjan Gupta

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