अस्तित्व का मेल; या तो सच या खेल | Short Poem on Complicated life

By Ranjan Gupta

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Poem on Complicated life
Poem on Complicated life – Poems Wala 

Poem on Complicated life  

पता नहीं ये खामोसी कब टूटेगी
आवाजें आएंगी या वक्त के साथ भूल जाएगी
मुक्त होने का कसर सिर्फ़ मैं हरगिज़ नहीं
बोल दो वरना मुफ़्त में हमारी चर्चाएं बढ़ जाएगी।

फिजूल में चर्चाएं शोभनीय नहीं
बुझती अग्नि को शीतल प्यारा नहीं
तुम्हारा इरादा क्या है, कब से है
अब ऐसे प्रश्न का कोई मतलब नहीं।

ये हमारे अस्तित्व का मेल है 
या तो सच है या खेल है
ग़र जिंदगी की सलाखें सबके लिए है 
तो उन कैदी के भी अपने-अपने जेल हैं।


   : रंजन गुप्ता


Thank You So Much For Reading This poem. I’m waiting for your valuable comment

Ranjan Gupta

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