वो गुजरती है मुहल्ले से | women empowerment |
Hindi Poem on women empowerment
सबकी भौंवे चढ़ जाती हैं
आंखे तार सी तन जाती हैं
हर रोज़ नई कहानी गढ़ना जारी हैं
जब एक मंज़िल की दीवानी निकल जाती हैं
शुरू होती है कानाफूसी जब
वो घर से निकल जाती है
रास्ते के राहगीर की नज़र देख
सोच और डर की खाई में गिर जाती है
देख शहरों के रीति रिवाजों को
वो गांव को सोच सहम जाती है
नारी सशक्तिकरण से अनजान
गांव में रह, आगे आने से पिछड़ जाती है
सबके ताने बाने सुनकर
चिंता में डूब जाती है जब
वो गुजरती है मुहल्ले से
अपनी शादी की बाट सुन
अपनी कच्छी उम्र पर ही सहम जाती है…
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