शिशुपाल वध पर कविता | Hindi Drama Poem: शिशुपाल वध, महाभारत की एक प्रमुख घटना है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था। शिशुपाल, भगवान विष्णु के द्वारपाल जय का तीसरा और आखिरी जन्म था। वह चेदि राज्य का राजा था और उसकी राजधानी चंदेरी थी। शिशुपाल, भगवान श्रीकृष्ण की बुआ का बेटा था और रिश्ते में पांडवों और कौरवों का भाई था। इस विषय पर हमारे कवि प्रवीण शुक्ल जी ने एक कविता लिखी है जिसका शीर्षक है- ‘शिशुपाल वध’ आइए पढ़ते हैं…
शिशुपाल वध | Hindi Drama Poem
इंद्रप्रस्थ के महाराज का दिव्य राज्याभिषेक था
भारतवर्ष के वीरों से सजा सारा क्षत्रिय समाज एक था ।
स्वागत सत्कार में जुटे पांचों भाई सबका अभिनंदन करते हैं,
एक एक कर सारे राजा अपना स्थान ग्रहण करते हैं।
यकायक पितामह उठे और प्रथम पूजन का प्रस्ताव किया
प्रथम पूजन के लिए सबने श्री कृष्ण का ही चयन किया।
तभी आया शिशुपाल और इसका विरोध करता है,
एक एक कर सभी अतिथियों का अपमान करने लगता है।
पितामह जैसे वीर को उसने भरी सभा में नपुसंक कहा
युद्धिस्ठिर को कायर और श्री कृष्ण को भी छलिया कहा।
क्रोध में पितामह बादल की भांति गर्जन करते हैं,
श्री कृष्ण ने उन्हें रोका और शिशुपाल को सुनते रहते हैं।
श्री कृष्ण ने उसकी माता को दिया हुआ वचन दिलाया,
शिशुपाल अति मूर्ख इतना भी वह समझ न पाया
मैं क्यों तुझसे भयभीत हूं अरे छलिया है तू
रण छोड़ कर भागने वाला कायर रणछोड़ है तू
इतना सुनते ही माधव का धीरज पूरा डोल गया
तीन लोक का स्वामी फिर बेहद गुस्से में बोल गया
बस शिशुपाल बस सहने की भी सीमा होती है
एक शब्द और फिर मुझे तुम्हारी मृत्यु दिखाई देती है
100 अपशब्दों तक श्री कृष्ण एक दम शांत रहते है
101वे अपशब्द पर श्री कृष्ण अपमान नहीं सहते हैं।
आह्वाहन किया सुदर्शन का और चारों ओर सन्नाटा था
प्रकट हुआ जब चक्र सुदर्शन फिर धरती का कंपन शुरू हुआ
शिशुपाल के पापों का राज्यसभा में ही अंत हुआ।
कवि~ प्रवीण शुक्ल
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