द्रौपदी स्वयंवर | Best Hindi Poem on Droupadi Swayamvar | Mahabharat

By Ranjan Gupta

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Best Hindi Poem on Droupadi Swayamvar

Best Hindi Poem on Droupadi Swayamvar: महाभारत की कहानी में द्रौपदी एक बहुत ही मुख्य चरित्र है, जिसके जन्म से लेकर शादी तक – सारी घटनाएं बेहद दिलचस्प है। एक ऐसा ही प्रसंग उनकी स्वयंवर से जुड़ा है। द्रौपदी स्वयंवर से जुड़ी कई रोचक कहानियां है तथा अनेकों कविताएं लिखी गई है। हमारे कवि प्रवीण शुक्ला जी ने भी इस विषय पर एक रोचक कविता लिखी है। आइए बिना किसी देरी के शुरु करते हैं।

द्रौपदी स्वयंवर | Best Hindi Poem on Droupadi Swayamvar

लाक्षाग्रह से पांडव प्राण बचा कर निकलते हैं
माता संग पांचों भाई वन वन विचरण करते हैं।

वन वन विचरण करते करते शकुनि पर दोष लगते हैं
ऋषि मुनि का वेश धर कर घर घर से भिक्षा लेते हैं।

माता की आज्ञा पर पांचों भाई पांचाल राज्य में जाते हैं
पांचाल पहुंचकर श्री कृष्ण के दर्शन से धन्य हो जाते हैं।

नजर घुमाई पांचों ने तो कौरव भी यही दिखाई देते हैं
आर्यावर्त के बड़े योद्धा सभा की मान बढ़ते हैं।

स्वयंवर के थे नियम अति कठोर
यज्ञ धनुष उठाकर संधान करना था घूमती मत्स्य की ओर।

कई राजा आए और शक्तिहीन होकर लौट गए थे
यज्ञ धनुष को देख कर सब मन ही मन में रोए थे।

फिर आई कर्ण की बारी, कर्ण ने धनुष उठा लिया
पर द्रौपदी ने सूत पुत्र कहकर कर्ण को इंकार किया।

यह बात कर्ण के हृदय को बाण की भांति भेद गया ,
सम्मान सहित यज्ञ धनुष को रख कर अपनी जगह पर बैठ गया

अब पूरी सभा में सन्नाटा छाया था
युद्धिस्ठिर की आज्ञा से अर्जुन आगे आया था।

अर्जुन को देख ऐसा लगता पर्वत भगवा रंग ओढ़े खड़ा था
श्री कृष्ण का आशीर्वाद लेकर यज्ञ धनुष की ओर चला था

धनुष का वंदन पूजन कर धनुष को उसने उठा लिया
प्रत्यंचा चढ़ा कर टंकार ध्वनि का गूंज किया।

इस टंकार ध्वनि से तीनों लोक कांप गए
पर्वत भी हिल उठा लोगो के हृदय बैठ गए

लिया एक बान अर्जुन ने फिर उसका संधान किया
अर्जुन का बाण ने वायु वेग से मत्स्य की आंख को भेद दिया
लिया द्रौपदी को और अपने कुटिया की ओर प्रस्थान किया।

प्रवीन शुक्ला

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Ranjan Gupta

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