Madhushala Poem | बच्चन जी की मधुशाला कविता से प्रेरित | डॉ. महेश बालपांडे

By Ranjan Gupta

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A wonderful poem inspired by Bachchan ji's Madhushala poem

Madhushala Poem in Hindi: हरिवंश राय बच्चन का जन्‍म 1907 में हुआ। वे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के समकालीन थे। हरिवंश राय बच्चन ने कविता की दो दर्जन से ज्‍यादा कृतियां हिंदी संसार को दी। उसी में से एक है ‘मधुशाला’। हरिवंश राय बच्चन को हम सबने मधुशाला के कवि के रूप में जाना है। ‘मधुशाला’ आज अपने 68 वें संस्करण में है और इससे ज़्यादा लोकप्रिय किताब शायद ही हिन्दी काव्य में कोई दूसरी होगी। उन्‍हें संघर्षों, नियति और प्रारब्‍ध से जूझने वाले कवि के रूप में जाना है।

मधुशाला का विरोध भी एक दौर में बहुत हुआ। विरोध में एक वर्ग था तो इसके पक्ष में भी लोग थे पर मधुशाला के अभिधात्‍मक प्रभाव ज्‍यादा देखे गए। हरिवंश राय बच्‍चन को भुलाने की बहुत कोशिशें हुईं पर वे न केवल लोकप्रियता की कसौटी पर बल्‍कि कल्‍पना, यथार्थ, चिंतन और जीवन दर्शन की जमीन पर हिंदी जन मानस पर अपनी छाप छोड़ने में समर्थ हुए। अब पेश है डॉ. महेश बालपांडे की कविता जो ‘मधुशाला’ से प्रेरित है।  

मधुशाला | Madhushala Poem in Hindi

(बच्चन जी की मधुशाला कविता से प्रेरित)

घर में बच्चे बिलग रहे हैं,
भरपेट नहीं मिलता उन्हें खाना।
पीने वालों को ना लगे बहाना,
वो सिधे घूस आते मधुशाला।

ठंडी, गर्मी, बारिश में भी,
छलकते रहता हाथ में प्याला।
ना मंदिर जाते, ना मस्जिद जाते,
सुबह चलकर आते मधुशाला।

न जात-पात का भेद यहांँ,
ना लड़ते हैं कोई मजहबी।
पास-पास सब बैठे हैं,
संग झूम रही है मधुशाला।

गरीब-अमीर सब एक बराबर,
देखने वालों में फर्क यहांँ।
कोई अंगूरी, अंग्रेजी में खुश है,
एक परिवार लगे उन्हें मधुशाला।

अपना-अपना गम है सबको,
अपनी-अपनी है परेशानी।
फिर भी सबको अपने गले लगाती,
समाज में बदनाम यह मधुशाला।

एक बार लगते ही होठों से,
दुनिया रंगीन लगती है।
भीगी बिल्ली बना रहने वाला,
बब्बर शेर बना दे मधुशाला।

कभी लगता है मुझको भी,
एक बार दर्शन मैं कर आऊं।
सुख-चैन छीना जिसने सब बहनों का,
कैसी दिखती है वो सौतन मधुशाला।

घर से निकल जब बाहर जाऊ,
मुझसे कहती मेरी प्राण प्रिया।
उससे हमेशा दूरी रखना,
जहरीली नागीण है यह मधुशाला ।

शब्दरचना :- कवि – महेश बालपांडे

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Ranjan Gupta

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