पितृ पक्ष पर कविता | Poem on Pitra Paksha | डाॅ. महेश बालपांडे जी की कविता

By Ranjan Gupta

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Poem on Pitra Paksha

Poem on Pitra Paksha | पितृ पक्ष पर कविता: कहते हैं मनुष्य जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है। तो सवाल यही है कि माता-पिता के जीवन में सिसकियां भरने वाले क्या कभी खुश रह सकेंगे? जिस संतान के लिए हँसते थे, जिसके पीछे दौड़ते थे, जिसका घोड़ा बनकर स्वयं चोट लगा लेते थे, उंगली पकड़ कर चलना सीखाते, चलने पर मिठाई बांटते थे, वही संतान माता-पिता की कमजोर पड़ती जिंदगी की रफ्तार को ही रोक देती है।

वृद्धों को उपेक्षित महसूस करवाकर हम अपने लिए एक ऐसी जमीन तैयार कर लेते हैं जो हमारे संस्कारों के बीज को पल्लवित, पुष्पित करती है. अशक्त, लाचार, बेबस जिंदगियों ने हमें सांसें दी हैं, हमारे जीवन को पहचान दी है, हमें हमारे वजूद से मिलाया है, वो रहे हैं तो हम हैं, अन्यथा कहीं भटक रहे होते उनके किए गए कर्म अहसान नहीं होते पर उन अहसानों को अपने मन में सदा याद रखना चाहिए।

तो आइए इस विषय पर हमारे कवि डाॅ. महेश बालपांडे जी ने शानदार कविता लिखी है। आइए बिना किसी देरी के हम पढ़ते हैं। अगर ये पसंद आए तो आप अपनी राय हमें कमेंट में जरुर बताइएगा..

पितृ पक्ष | Poem on Pitra Paksha

वे भोजनथाली लेकर हाथों में,
कौओं को ढूंँढ रहे हैं।
मस्ती का आलम ऐसा,
आज सबके तोते उड़ रहे हैं।

बूढ़े माता-पिता को,
रखकर वृद्धाश्रम में।
पितरों को देने तर्पण,
कोलाहल गली- गली में।

जीते जी ना सुहाएँ,
कभी माँ – बाप फुटी आँखे।
चले आज परंपरा को निभाने,
पर कौए ईद का चांँद हो गए हैं।

यह भी जरूरी हैं साहब,
निभाना इस कर्तव्य को।
वरना कौन रखेगा याद,
जीवन में इन संस्कारों को।

जैसा बोओंगे वैसा,
तुम भी पाओगे यारों।
गिरगिट की तरह बच्चें,
आज रंग बदलते जा रहे हैं।

माता – पिता की पूजा,
करलो उनके जीते जी।
कब क्या पता तुम्हे भी,
यही सौगात मिल जाएँ।

कविराज :- डाॅ. महेश®बालपांडे

निष्कर्ष

जिंदगी ने हमें जाने अनजाने चाहे जो भी दिया हो हमारे बड़े सदैव हमारे प्यार और सम्मान के अधिकारी होने चाहिए। बूढ़े और लाचार माता-पिता घर की बुनियाद होते हैं। उनकी आंखों के बहते आंसुओं के हम गुनहगार हैं। उनकी जगह हमारे दिलों में और घर में होनी चाहिए, वृद्धाश्रम में नहीं। वृद्धाश्रम में भेजकर उनके दिलों को जख्मों से नहीं भरना चाहिए। भाग्यशाली है वे माता-पिता जिनके बच्चे अंतिम सांस तक उनका ख्याल रखते हैं, वरना तो बूढ़ी आंखों की करुण कहानी ओर सच्चाई अंतस को हिला देती है।

तो आपको यह सामाजिक कविता ‘पितृ पक्ष पर कविता’ कैसी लगी। उम्मीद है कि हमारे कवि की यह कविता आपको पसंद आयी होगी। हमारी टीम इसी तरह के कंटेंट के लिए प्रतिबद्ध है। हम नित्य नए-नए लोगों की कविताएं आपके सामने लेकर आते हैं।

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Ranjan Gupta

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