द्रौपदी वस्त्र हरण कविता | Draupadi’s Vastra Haran in Mahabharata Poem in Hindi

By Ranjan Gupta

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द्रौपदी वस्त्र हरण कविता | Draupadi's Vastra Haran in Mahabharata Poem in Hindi

Draupadi’s Vastra Haran in Mahabharata Poem in Hindi: महाभारत को न्याय और अन्याय के बीच रक्तरंजित युद्ध भी माना जाता है। कौरवों ने पांडव बंधुओं पर अनगिनत अत्याचार किए लेकिन इन अत्याचारों की पराकाष्ठा थी, द्रौपदी का चीरहरण। जब भी द्रौपदी के चीरहरण का उल्लेख किया जाता है, तो इसे नारी के विरुद्ध सबसे क्रूर अपराधों में से एक माना जाता है। द्रौपदी के चीरहरण की निंदनीय घटना के बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों को न्याय प्राप्त करने के लिए युद्ध का मार्ग दिखाया।

युधिष्ठिर और मामा शकुनि जुआं खेल रहे थे, उस समय युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ ही द्रौपदी को भी हार गए थे। इसके बाद दुर्योधन के कहने पर दु:शासन भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण करने लगा, तब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया और भगवान ने द्रौपदी की लाज बचा ली।

Draupadi’s Vastra Haran in Mahabharata Poem in Hindi

शीर्षक: द्रौपदी वस्त्र हरण

धर्म ध्वजाएं हस्तिनापुर की
उस क्षण तत्काल विनाश हुई
साम्राज्ञी याज्ञसैनी जिस क्षण कौरव की दास हुई

केश खींचकर दुशासन पांचाली को
ले सभा के सम्मुख आया
पंचवीर की नाकाम वीरता का उसे क्षण प्रमाण सब ने पाया

क्या पितामह क्या काका ससुर
सबकी लज्जाएं दूर हुई
धर्म पाठ पढ़ने वालों की
धर्म सभाएं चूर हुई

दुर्योधन से युधिष्ठिर कैसे पांचाली हार गया
याज्ञसेनी ने ना ऐसा युधिष्ठिर को अधिकार दिया

कुलवधू पुत्रवधू राजा की
भरी सभा में प्रस्तुत हुई
स्त्री स्वयं की अधिकारी
कैसे किसी की दूत हुई

याज्ञसेनी ने पांडव कौरव की
शिक्षा पर प्रश्न उठा डालें
धर्म गुरुओं की धर्म शिक्षा
पड़ी याज्ञसैनी के पाले

स्त्री को दाव लगाने की
शिक्षा के गुरुओं ने दी थी
या कुरु वंश की सदियों से
चली आ रही है नीति

द्रौपदी सभा में नहीं अपितु
कुल की प्रतिष्ठा खड़ी हुई थी
पांडवों के हाथों में
दासत्व बेड़ी जड़ी हुई थी

चीख चीखकर का द्रौपदी ने सभा में
स्वाधिकार जतलाया
यज्ञ अग्नि से जन्मी थी वह
उसने ना दासत्व अपनाया

धर्म के नाम पर मौनता सब की धरण थी
दुशासन, दुर्योधन ने
मर्यादाएं सारी मर्दान की

क्या पड़कर स्त्री का
खींच कुल का मान लिया
द्रौपदी ने एकमात्र आस से
श्री कृष्ण का नाम लिया

यह दृश्य देखना सभा भंग,
ना नियति को लज्जा आई
बहुभुज नाकाम कर
रो रहे थे पांडव पांचो भाई

दास कैसे होगी स्त्री
वह जननी  वह नारी है
स्वयं कृष्णा है सकल विश्व में
जो न्याय का अधिकारी है

कृष्ण सर्वज्ञता उसे
न्याय क्या कोई सिखलाएगा
अनीति अधर्म के विरुद्ध
प्रकोप स्वयं अब कृष्णा दिखलाएगा

कृष्ण ने सभा में प्रकोपमय बिजली चमकाई
चीर खींच कर थका दुशासन
पांचाली के मान की
बढ़ा दी इतनी लंबाई

बदला युग बदली बातें
महाभारत अब भी जारी है
फिर से न्याय करने की
कृष्ण तुम्हारी बारी है

बदला नही कुछ भी अब तक

फर्क बस इतना है
अब तो कृष्ण भी मौन है

नंदनी खरे
छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)

in Hinglish

dharm dhvajaaen hastinaapur kii
us kshaṇ tatkaal vinaash huii
saamraajñii yaajñasainii jis kshaṇ kowrav kii daas huii

kesh khiinchakar dushaasan paanchaalii ko
le sabhaa ke sammukh aayaa
panchaviir kii naakaam viirataa kaa use kshaṇ pramaaṇ sab ne paayaa

kyaa pitaamah kyaa kaakaa sasur
sabakii lajjaaen duur huii
dharm paaṭh padhane vaalon kii
dharm sabhaaen chuur huii

duryodhan se yudhishṭhir kaise paanchaalii haar gayaa
yaajñasenii ne naa aisaa yudhishṭhir ko adhikaar diyaa

kulavadhuu putravadhuu raajaa kii
bharii sabhaa men prastut huii
strii svayam kii adhikaarii
kaise kisii kii duut huii

yaajñasenii ne paanḍav kowrav kii
shikshaa par prashn uṭhaa ḍaalen
dharm guruon kii dharm shikshaa
padii yaajñasainii ke paale

strii ko daav lagaane kii
shikshaa ke guruon ne dii thii
yaa kuru vamsh kii sadiyon se
chalii aa rahii hai niiti

drowpadii sabhaa men nahiin apitu
kul kii pratishṭhaa khadii huii thii
paanḍavon ke haathon men
daasatv bedii jadii huii thii

chiikh chiikhakar kaa drowpadii ne sabhaa men
svaadhikaar jatalaayaa
yajñ agni se janmii thii vah
usane naa daasatv apanaayaa

dharm ke naam par mownataa sab kii dharaṇ thii
dushaasan, duryodhan ne
maryaadaaen saarii mardaan kii

kyaa padakar strii kaa
khiinch kul kaa maan liyaa
drowpadii ne ekamaatr aas se
shrii kṛshṇ kaa naam liyaa

yah dṛshy dekhanaa sabhaa bhang,
naa niyati ko lajjaa aaii
bahubhuj naakaam kar
ro rahe the paanḍav paancho bhaaii

daas kaise hogii strii
vah jananii  vah naarii hai
svayam kṛshṇaa hai sakal vishv men
jo nyaay kaa adhikaarii hai

kṛshṇ sarvajñataa use
nyaay kyaa koii sikhalaaegaa
aniiti adharm ke viruddh
prakop svayam ab kṛshṇaa dikhalaaegaa

kṛshṇ ne sabhaa men prakopamay bijalii chamakaaii
chiir khiinch kar thakaa dushaasan
paanchaalii ke maan kii
badhaa dii itanii lambaaii

badalaa yug badalii baaten
mahaabhaarat ab bhii jaarii hai
phir se nyaay karane kii
kṛshṇ tumhaarii baarii hai

badalaa nahii kuchh bhii ab tak

phark bas itanaa hai
ab to kṛshṇ bhii mown hai

Nandani Khare

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Ranjan Gupta

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