दिल के दर्द पर कविताएं | Dil ke dard par kavitayen : कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं जिनकी आवाज नहीं होती, कुछ सुख ऐसे भी होते है जिनकी खुशी नहीं होती। आइए अनुराग जी की कविताएं पढ़ते हैं जिसमें उन्होनें दर्द और स्वीकृति की बात की है। दर्द और स्वीकृति नामक यह दोनों कविताएं समाज के लोगों की उस सच्चाई को बताती है जिसने हम सभी ने कभी न कभी देखा या महसूस किया है।
शीर्षक: दर्द | दिल के दर्द पर कविताएं
मुलाज़िम बन चुके लोग देह के
तन्ख्वाह चाहते रोजाना हैं
मुजरिम भी क्या कहते हो इनको
जिन्हे गुनाह तक का पता ना है
हर शख्स शिकार की तलाश में
यूँ दर बदर भटके जा रहा
आलम जब भी पूछो कहना है
उसमें अब वो बात ना रहा
मुस्कान अब उनकी ज़हर ही सही
दिल देने के वादे तो पूरे हुए
अंदर से जहन खोकला हो चुका
बातों के कायदे तो कायम रहे
बेहोश जीवन के हर क्षण को
जाने किस ख्वाब की आशा है
दिल तो नहीं हाँ मन ज़रूर
तनिक प्रेम-घूँट का प्यासा है
एक अजनबी चुपके से दिल में
दीवार कैसी खींच जाता है ?
जिसके उस पार है खून बैठा
इधर कैसे रंगों का साया है ???
कवि: अनुराग
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शीर्षक: स्वीकृति
रात के पिछले पहर ने बताया
अब घूटन होने लगी अँधेरे से
कभी भोर का डर सताता था
आज उसके इंतजार के मारे हैं
ख्वाहिशों की सुबह क्यूँ होती नहीं
ये चांदनी मुझे सता रही है
शबनम की भेंट चढ़ाकर इस पल
ख़लिश से हमें नहला रही है
कभी अमृता-इमरोज़ भी हो गुज़रे
ये मानने से जी घबरा जाता है
वो किस्से अब शूली पर चढ़ते
हर शाम उनको मारा जाता है
मुहब्बत की सेज अधूरी पड़ी है
खाली पेट भरे जा रहे हैं
ग़ालिब को भूल जाइए ज़नाब
कसिदे कोई और पढ़े जा रहे हैं ||
कवि: अनुराग
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