हरिवंश राय बच्चन की कविता | harivansh rai bachchan poems || Hindi poetry

By Ranjan Gupta

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harivansh rai bachchan poems

हिन्दी की प्रसिद्ध रचनाओं में से हरिवंशराय बच्चन की प्रसिद्ध कविताओं के बारे में नीचे बात की जा रही है | Harivansh Rai Bachchan Poems in hindi. Poemswala की अमूल निधि में आज प्रस्तुत है हरिवंशराय बच्चन जी की प्रसिद्ध कवितायें (harivansh rai bachchan poems in hindi)

हरिवंश राय बच्चन की कविता

हरिवंश राय बच्चन जी लिखते हैं कि

यहां सब कुछ बिकता है

यहां सब कुछ बिकता है, दोस्तों रहना जरा संभल के

बेचने वाले हवा भी बेच देते हैं गुब्बारे में डाल के

सच बिकता है झूठ बिकता है बिकती है हर कहानी

तीनों लोक में फैला है, फिर भी बिकता है बोतल में पानी

कभी फूलों की तरह मत जीना

जिस दिन खिलो टूटकर बिखर जाओगी

जीना है तो पत्थर की तरह जियो

जिस दिन तरा से गए तो खुदा बन जाओगे

नफरतों का असर देखो जानवरों का बटवारा हो गया

गाय हिंदू हो गई और बकरा मुसलमान हो गया

मंदिरों में हिंदू देखे मस्जिदों में मुसलमान

शाम को जब मैं खाने गया तब जाकर दिखे इंसान

हारना तब आवश्यक हो जाता है जब लड़ाई अपनों से हो

और जीतना तब आवश्यक हो जाता है जब लड़ाई अपने आप से हो

मंजिल मिले यह तो मुकद्दर की बात है

हम कोशिश ही ना करें यह तो गलत बात है 

किसी ने बर्फ से पूछा कि आप इतने ठंडे क्यों हो

बर्फ ने बड़ा अच्छा जवाब दिया

मेरा अतीत भी पानी मेरा भविष्य भी पानी

फिर गर्मी किस बाद परखूं

गिरना भी अच्छा है दोस्तों औकात का पता चलता है

बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को अपनों का पता चलता है

सीख रहा हूं अब मैं भी इंसानों को पढ़ने का हुनर

सीख रहा हूं अब मैं भी इंसानों को पढ़ने का हुनर

सुना है चेहरे पर किताबों से ज्यादा लिखा होता है

रब ने नवाजा हमें जिंदगी देकर और

हम शोहरत मांगते रह गए

जिंदगी गुजार दी शोहरत के पीछे

फिर जीने की मोहलत मांगते रह गए 

यह जनाजे यह कब्र सिर्फ बातें हैं मेरे दोस्त

वरना मर तो इंसान तभी जाता है

जब याद करने वाला कोई ना हो

यह समंदर भी तेरी तरह खुदगर्ज निकला

जिंदा थे तो तैरने ना दिया और मर गए तो डूबने ना दिया

क्या बात करें इस दुनिया की

क्या बात करें इस दुनिया की हर शख्स के

अपने अफसाने हैं जो सामने हैं उसे लोग

बुरा कहते हैं और जिसे कभी देखा ही नहीं

उसे सब खुदा कहते

हैं आज मुलाकात हुई जाती हुई उम्र से

मैंने कहा जरा ठहरो तो व हंसकर इठला हुए

बोली मैं उम्र हूं ठहरती नहीं पानी चाहते

हो मुझको तो मेरे हर कदम के संग चलो मैंने

भी मुस्कुराते हुए कह दिया कैसे चलूं मैं

बनकर तेरा हम

कदम तेरे संग चलने पर छोड़ना होगा मुझको

मेरा बचपन मेरी नादानी मेरा लड़कपन तू ही

बता दे कैसे समझदारी की दुनिया अपना लू

जहां है नफरतें दूरियां शिकायतें और अकेला परन

मैं तो दुनियाए चमन में बस एक मुसाफिर हूं

गुजरते वक्त के साथ एक दिन यूं ही गुजर

जाऊंगा करके कुछ आंखों को नम कुछ दिलों

में यादें बनकर बस

जाऊंगा बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर

क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका

चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ऐसा

नहीं है कि मुझ में कोई ऐब नहीं है पर सच

कहता हूं मुझ में कोई फरेब नहीं है जल

जाते हैं मेरे अंदाज से मेरे दुश्मन

क्योंकि एक जमाने से मैंने ना मोहब्बत

बदली है और ना दोस्त बदले हैं एक घड़ी

खरीदकर हाथ में क्या बांध ली एक घड़ी खरी

कर हाथ में क्या बांध ली वक्त पीछे ही पड़

गया मेरे सोचा था घर बनाकर बैठूंगा सुकून

से पर घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला

सुकून की बात मत कर ए गालिब सुकून की बात

मत कर ए गालिब वो बचपन वाला तबार अब नहीं

आता शौक तो मां-बाप के पैसों से पूरे होते

हैं अपने पैसों से तो बस जरूरतें ही पूरी

हो पाती हैं जीवन की भाग दौड़ में क्यों

वक्त के साथ रंगत खो जाती है जीवन की

भागदौड़ में क्यों वक्त के साथ रंगत खो

जाती है हंसती खेलती जिंदगी भी आम हो जाती

है एक सवेरा था जब हंस कर उठा करते थे हम

और आज कई बार बिना मुस्कुराए ही शाम हो

जाती है कितने दूर निकल गए रिश्तों को

निभाते निभाते खुद को खो दिया हमने अपनों

को पाते पाते लोग कहते हैं कि हम

मुस्कुराते बहुत है लोग कहते हैं कि हम

मुस्कुराते बहुत हैं और हम थक गए दर्द को

छुपाते छुपाते खुश हूं और सबको खुश रखता

हूं लापरवाह हूं फिर भी सबकी परवाह करता

हूं चाहता हूं कि यह दुनिया बदल दूं पर दो

वक्त की रोटी की जुगाड़ से फुर्सत नहीं

मिलती दोस्तों महंगी से महंगी घड़ी पहन कर

देख ली महंगी से महंगी घड़ी पहन कर देख ली

फिर भी यह वक्त मेरे हिसाब से कभी ना चला

यूं ही हम दिल को साफ रखने की बात करते

हैं पता नहीं था कि कीमत चेहरों की हुआ

करती है मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो

नहीं मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं

पर सुना है लोग सादगी में जीने नहीं देते

अगर खुदा नहीं है तो उसका जिक्र क्यों और

अगर खुदा है तो फिर फिक्र क्यों दो बातें

इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं दो

बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं

एक उसका अहम और और दूसरा उसका वहम ख्वाहिश

नहीं मुझे मशहूर होने की आप मुझे पहचानते

हैं बस इतना ही काफी है अच्छे ने अच्छा और

बुरे ने बुरा जाना मुझे क्योंकि जिसकी

जितनी जरूरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे

जिंदगी एक फलसफा भी कितना अजीब है साम

कटती नहीं और साल गुजरते चले जा रहे हैं

एक अजीब सी दौड़ है यह जिंदगी जीत जाओ तो

कई अपने पीछे छूट जाते हैं और हार जाओ तो

अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं कभी-कभी कभी

कुछ ऐसा लिख देते हैं जिसे आम इंसान अपने

जीवन में महसूस तो करता है पर बया नहीं कर पाता

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Ranjan Gupta

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