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जीवन और प्रेम पर कविता | Ziwan aur Prem par kavita

By Ranjan Gupta

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जीवन और प्रेम पर कविता | Ziwan aur Prem par kavita

Ziwan aur Prem par kavita | जीवन और प्रेम पर कविता: जीवन और प्रेम का अद्भूत संगम है जो जिंदगी में जीते वक्त भी और मरने के बाद भी एहसास होता है। कभी हम उसकी बातों को आखिरी आवाज समझकर याद कर लेते हैं तो कभी ये सोच लेते हैं कि जीना इसी की नाम है। वो जरूरी था पर अब जरूरत के लिए नहीं। हम सबने कभी न कभी इसकी झलक अपने जीवन में देखी है।

इसी विषय पर आज हम तीन महत्वपूर्ण और रोमांचक कविता लेकर आए हैं जिसे हमारे कवियों ने लिखा है। अगर उनकी यह रचना पसंद आए तो कमेंट में जरूर बताइएगा।

Ziwan aur Prem par kavita

जीवन और प्रेम पर कविता | Ziwan aur Prem par kavita

आखिरी आवाज |

वो तेरी फुर्क़त भी कैसी फुर्क़त थी
तुझे खो कर भी मैं तन्हा नही था

अब जाकर मैं सोचता हूँ कि मेरी
मोहब्बत थी कोई  सौदा नही था

ओ ख़ुदा तूने मुझे उससे मिलाया
मेरे जैसा था जो पर मेरा नही था

क्या डर सताया की मैं सोचता हूँ
किनारे पर था क्यों कूदा नही था

इश्क़ के राह पे आख़िर क्या हुआ
मर गया था मैं बस खोया नही था

अज़ीब तबियत उस रात भर थी
नींद आ रही थी मैं सोया नही था

तुझे आख़िरी आवाज़ देता मैं पर
वक़्त बहुत था तब मौका नही था

- अध्यात्म सिंह

जरूरी है |

हर तारीफ पे उनका शर्माना भी ज़रुरी है
फिर सपने दिखा साथ निभाना भी ज़रुरी है
ज़रूरी है उनकी इन आँखों में डूबना
उनकी हर एक अदाओं पर यूं मर जाना भी ज़रुरी है

दिल की तड़प यूं दिल में ना छिपाओ
उनका ज़ुबां पे आना भी ज़रुरी है
उनका मुस्कुराना भी ज़रुरी है
रूठ के बिखर जाना भी ज़रुरी है

यूं कब तक इशारो में समझाऊं उन्हे
मोह्हबत की बाते कैसे दिखलाऊं उन्हे
प्यार में हद से गुजर जाना भी तो ज़रुरी है
अब टूटना तो प्यार में लाजिम है
पर प्यार टूट जाये तो उसे सजाना भी तो ज़रुरी है

यूं छोड़ कर ना जाना तुम
किया मोहब्बत हैं तो उसे निभाना भी ज़रुरी है
मकसद तो साथ मरने का है
पर साहब मज़बूरी में प्यार निभाना भी ज़रुरी है

कोशिश हर हाल में तुझे पाने का है
यूं प्यार में हार के मुस्कुराना भी ज़रुरी है
दिखती है तन्हाई तेरे जाने से
तू साथ है…… ऐ एहसास कराना भी तो ज़रुरी है

अब रूठना तो बाजिब है
रूठ के सबर जाना भी तो ज़रुरी है
यूं अदाओं को कब तक सँभालु मैं
उसे देख दिल का मचल जाना भी तो ज़रुरी है

यूं अश्क़ों से बात नहीं बनती
उन अश्कों का दर्द दिल में छिपा जाना भी तो ज़रुरी है
नाराजगी तो जायज है मेरे हमसफ़र
रिश्ते बिखर जाये तो उसे समेट घर बनाना भी तो ज़रुरी है।

- मनीष कुमार 

मैं कैसे कहूं |

मैं कैसे कहूं कि मुझसे प्रेम है उसे,
समाज जीने न देगा न उसे न मुझे।
रूढ़िवादी परंपराएं टूट जाएगी,
जब गलतियां होगी वो हमारे सर आएंगी।

गलियों का हर चौराहा,
हमारे कहानियों से गूंज जाएगा।
परिपक्व हम होंगे और
पूरा शहर जल भून जाएगा।

सामने आयेंगे,
समाज के ठेकदार।
कुछ निकालेंगे जाति कुछ धर्म,
कोई निकलेगा हथियार तो कोई कर्म।

कोई इतिहास बताएगा तो कोई भविष्य,
जबकि वर्तमान में रहेंगे सब अदृश्य।
उंगलियां उठेगी हम पर, कुछ परिवार पर,
राहगीरों को दर्द ऐसा होगा,
जैसे आक्रमण हुआ हो उनके घर पर।

प्रकृति नैसर्गिक है,नैसर्गिक है प्रेम।
कृत्रिम हैं हम, हमारे नियम,
जो देखता है सौंदर्य,जाति,अर्थ और धर्म।
पर एक दिन ऐसा आएगा,
उपरोक्त पंक्तियां बोनी हो जाएगी।

समय बदलेगा व्यवस्थाएं बदलेगी,
बदलेगी विचार और बदलेगी नैसर्गिकता।
तब मैं कहूंगा कि मुझसे प्रेम है उसे,
और समाज संग जीने देगा उसे और मुझे।

- पवन कुमार

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Ranjan Gupta

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