Life is a constant battle with oneself, and with circumstances. This poem is about perseverance. Never giving up and never giving in. Irrespective of the results, one can remain true to oneself if he/she has the courage of conviction.
जीवन की जंग
कुछ भी हासिल नहीं, इस ज़माने से,
ठोकरें खाता रहा, कहीं पहुँचने के बहाने से.
आज भी मैं वहीं हूँ जहाँ था.
पर आस मैंने छोड़ी नहीं, हार मैंने मानी नहीं.
कुछ तो बात है मुझमें!
अब तक की ज़िंदगी बीत गई जंगों में, एक भी ना जीत पाया,
हर युद्ध के बाद, ख़ुद को अकेला पाया,
पर लड़ाई मैंने छोड़ी नहीं, हार मैंने मानी नहीं.
कुछ तो बात है मुझमें!
मेरे सारे सफ़र, किसी मुकाम तक ना पहुँच पाये,
कई मंजिलों के लिए तो, रास्ते तक ना निकल पाये.
पर सफ़र मैंने छोड़ी नहीं, हार मैंने मानी नहीं.
कुछ तो बात है मुझमें!
कितने प्यारे लोग मिले, इस जीवन की राह में,
मैं ही ना टिक पाया, किसी के साथ में.
पर दोस्ती मैंने छोड़ी नहीं, हार मैंने मानी नहीं.
कुछ तो बात है मुझमें!
मेरे अपने विचार अपने ही रहे,
किसी ने ना तबज्जुह दी, ना वे समझ सके.
पर मैं भी डिगा रहा, अपने ही बातों पर.
जिद्द मैंने छोड़ी नहीं, हार मैंने मानी नहीं.
कुछ तो बात है मुझमें!
जब कुछ दे पाया तो, लोग हँसे मेरी बेवक़ूफ़ी पर,
जब ना दे पाया तो, हँसे मेरी बेबसी पर.
पर मैं ज़िंदगी जीता रहा, अपने ही शर्तों पर.
ख़ुद्दारी मैंने छोड़ी नहीं, हार मैंने मानी नहीं.
कुछ तो बात है मुझमें!
मेरे गीतों में सुर तो थे, पर तराने ना वो बन सके.
मेरी कहानियाँ बोलती तो बहुत कुछ थी, पर अफ़साने ना वो बन सके.
मेरे गीत जमाने के साथ ना चल सके.
पर सुनानी मैंने छोड़ी नहीं, हार मैंने मानी नहीं.
कुछ तो बात है मुझमें!
(नलिन कुमार ठाकुर)