Naukri par kavita: नौकरी की कीमत जितनी ज़्यादा होती है, उतनी ही ज़्यादा पसंद की जाती है। इसकी कई शक्लें हैं, लेकिन नाम एक ही है – “नौकरी”। यह बहुत लोगों के घर बसाती है, उनके सपने पूरे करती है, उनके जीवन में खुशियां लाती है।
नौकरी | Naukri par kavita
ऐ नौकरी तू क्या चीज़ है
लगता है तू सच में अज़ीज़ है।
तुझे पाने के लिए क्या न करता कोई,
रात दिन जागकर पढ़ाई करता है कोई,
तो दर-दर भटकता है कोई।
ऐ नौकरी तू क्या चीज़ है!
लेकिन खामियां भी हैं तुझमें,
बहुत सारी कमियां भी हैं तुझमें।
तुझे कोई पाने को तरसता है,
तो तुझे कोई पाकर भी नाखुश है।
एक उम्र बिता देते हैं लोग तेरी तलाश में,
मेहनत करते-करते तेरी आस में।
तुझे पता है तेरी क़ीमत लगती है,
तेरी क़ीमत जितनी ज़्यादा हो,
तू उतनी ही पसंद आती है।
अगर तेरी क़ीमत कम हो,
तो तू लोगों को कम भाती है।
तेरे बहुत से चेहरे हैं,
पर तेरा नाम एक ही है — नौकरी।
तुझे नहीं पता तू कितनों का घर बसाती है,
उनके घरों में खुशियाँ लाती है।
कितनों का सर ऊँचा करती है,
उनके सपने पूरे करती है।
ऐ नौकरी तू क्या चीज़ है,
लगता है तू सच में अज़ीज़ है।
Lekhika_ Prachi kushwaha
Naukri par kavita नामक इस कविता में “नौकरी” को एक ऐसी चीज़ के रूप में दर्शाया गया है जो बहुत मूल्यवान और प्रिय (अज़ीज़) है। लोग इसे पाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, पढ़ाई करते हैं, डॉक्टरों के पास भटकते हैं, यानी हर संभव कोशिश करते हैं।
कविता ये भी बताती है कि नौकरी में खूबियां हैं तो कमियां भी हैं — कोई उसे पाने को तरसता है, तो कोई पाकर भी खुश नहीं होता। अंत में, कवि एक बार फिर दोहराता है कि “ऐ नौकरी, तू क्या चीज़ है… लगता है तू सच में अज़ीज़ है।”