समाज को आईना दिखाती यह कविता: ‘वो सीधी मांग’ कविता जीवन के उस पहलू को छूने का प्रयास करती है जो समाज में निहित एक इंसान की मांग है। एक अनुभूति है, आपबीती है जो समाज और इंसान को चेतावनी देने का काम करती है कि वह लालसा, द्वेष के साये में ना रहे। अगर आप कमजोर बनते हैं तो कोई भी आपका फायदा उठाकर चला जाएगा या घात कर जाएगा। आइए बिना किसी देरी के अनुश्री श्रीवास्तव जी की कविता ‘वो सीधी माँग’ पढ़ते हैं।
वो सीधी माँग | समाज को आईना दिखाती यह कविता
बालों को दो भागों में बाँटती
वो सीधी माँग, ना जाने क्या-क्या कह जाती है,
बता जाती है दर्द, द्वेष, कर्त्तव्य और मनोरथ की आपबीती
वो सीधी माँग ना जाने क्या-क्या कह जाती है
ना वो सिंदूरी हो पायी, ना वो सूनी रह पायी
बस लालसा से भरी रही
उम्मीद के साये में सपने संजोती रहीं
वो सीधी माँग ना जाने क्या-क्या कह जाती है
समाज के तानों को भी दो भागों में बाँटती
वो सीधी माँग, ना जाने क्या-क्या कह जाती है
कोई कहता पुरातन है,
तो कोई कमजोर समझ के घात कर देता
कैसे समझाए आड़ी, तिरछी, सीधी
माँग तो बस केश सज्जा का तरीका है
साँचे के अनुकूल बनाना तो समाज का है
असल में अपनी सोच को दूसरों पे मढने का एक नया पुराना तरीका है
वो सीधी माँग ना जाने क्या-क्या कह जाती है II
अनुश्री श्रीवास्तव
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