Short poems about a strong woman in Hindi: भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति का रूप माना गया है। हमारे प्राचीन वेदों से यह ज्ञात होता है कि प्राचीन भारतीय समाज मातृसत्तात्मकता थी। नारी इस समाज का मूल आधार है तथा ईश्वर द्वारा समाज को दिया गया सूबसूरत उपहार है। यूं कहें तो सूंदरता का दूसरा नाम स्त्री है। हालांकि, जो बदलाव हमारे समाज में अब तक आ जाने चाहिए थे, वह अभी तक हो नहीं पाया है। भले ही आज हम यह कहकर अपनी पीठ थपथपा लें कि आजादी के 75 सालों में हमारी महिलाएँ चाँद पर पहुँच गई हैं, फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं, ओलंपिक में पदक जीत रही हैं, बड़ी-बड़ी कंपनियाँ चला रही हैं या राष्ट्रपति बनकर देश की बागडोर संभाल रही हैं, लेकिन व्यावहारिक तौर पर देखें तो यह संख्या महिलाओं की आबादी का अंशमात्र ही है।
नारी की वर्तमान स्थिति | Short poems about a strong woman
शहर की अंधेरी सड़कों पर, अकेले चलना सीख रही है
जीवन की कठिनाईयों से वो, आगे बढ़ना सीख रही है
कुछ ने कर लिया हासिल सब कुछ, जो पुरुष भी ना कर पाए
कुछ समाज के निचे दबकर, जीवन जीना सीख रही है
कुछ राष्ट्रपति जैसे ऊंचे पद पे, कुछ फाल्गुनी नायर बन बैठी होंगी
कुछ अब भी ससुराल पीहर के बीच अटक कर रोती होगी
कुछ का पति अंहकारी होगा मार पीट वो करता होगा
सास बड़ी कुकर्मी होगी यौतुक यौतुक करती होगी
ससुर का भी हाथ बराबर, चुप्पी साधकर रखता होगा
कुछ ने उड़कर छु लिया अम्बर, कुछ अब भी चलना सीख रही है
कुछ समाज के निचे दबकर जीवन जीना सिख रही है
कुछ काटों सी सख्त व कंटक, लक्ष्य भेदना सीख चुकी है
कुछ फूलों सी सौम्य और कोमल खिलती फिर मुरझाती होंगी
कुछ होंगी जो अजेय होकर नींद चैन की सोती होगी
और कुछ विनेश फौगाट बनकर उनको भी धो देती होगी
कुछ ने मनु भाकर बन कर, अनेक पदक संभाले होंगे
और कुछ डॉक्टर बनने की चाह मे, ऊंची कूद लगाती होगी
बीच राह मे संजय जैसे कितने गधे आते होंगे ?
आत्म सम्मान से लड़ते लड़ते जान भी दे देती होंगी
कुछ ममता बैनर्जी सी भी होगी, नारी होकर,
नारी सम्मान मे लड़ना जो भूली होंगी
कुछ हीरे सी चमक उठी है कुछ कोयला बन कर जलती होगी
कुछ ने उड़कर छु लिया अम्बर कुछ अब भी चलना सिख रही है
कुछ समाज के नीचे दबकर जीवन जीना सिख रही है
कवि: संजय गारकोटी
Short poems on women empowerment
हमारे समाज की महिलाओं का एक बड़ा तबका आज भी सामाजिक बंधनों की बेड़ियों को पूरी तरह से तोड़ नहीं पाया है; उनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है या यूँ कहें कि हमारा पितृसत्तात्मक समाज उन्हें जन्म से ही ऐसे साँचे में ढालने लगता है कि वे अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिये पुरुषों का सहारा ढूँढती हैं।
वहीं यह भी सत्य है कि ”जब-जब कोई स्त्री अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है तब-तब न जाने कितने रीति-रिवाजों, परंपराओं, पौराणिक आख्यानों की दुहाई देकर उसे गुमनाम जीवन जीने पर विवश कर दिया जाता है।” इसलिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर भारत में शैक्षिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक व आर्थिक स्तर पर महिलाओं ने अब तक कितनी दूरी तय की है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि आज के समय में महिलाएँ घर की चारदीवारी से निकलकर सत्ता की बागडोर संभाल रही हैं, और न केवल संभाल रही हैं बल्कि कुशल संचालन कर रही हैं।
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