एक रहस्यमयी किस्सा | खुद से संवाद | नंदनी खरे

By Ranjan Gupta

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एक रहस्यमयी किस्सा

एक रहस्यमयी किस्सा

कहां थी तुम? मैंने ढूंढा तुम्हें, तुम मिली नहीं।
इतनी ठंड में बैठकर क्यूं लिख रही हो?
क्या तुम इतिहास और भविष्य एक साथ सोच रही हो क्यों?
अच्छा बताओं तुम्हारा पसंदीदा शब्द ???
कुछ चुनिंदा चीज़ जो तुम्हे पसंद हो??
अच्छा तुम रामायण पढ़ती हो, भागवत गीता पढ़ती हो क्या मिलता है तुम्हें क्यूं?

हां मैं खुदसे बात कर रही हूं पर तुम तो मुझसे बात कर रही हो न,
तुम्हारी दुनियां अलग है यार,
मै यहां अकेले शांत बैठकर लिख रही हूं और तुम वहां कई लोगो के बीच।
मुझे भी यहां से चांद दिखता है और तुम्हे भी बस यही समानता है हममें, जो तुम्हे मुझसे जोड़ती है। क्या हम अलग अलग है ? तुमने कभी सोचा है यदि हम मिल जाए तो क्या होगा,
तुम और मैं कुछ नदियों के दो किनारे जैसे है एक जैसे एक साथ पर मिल नहीं सकते।
तुम और मैं अलग है यार,,,

तुम भविष्य सोचती हो, और मैं इतिहास की खोज में हूं
तुम अनन्तता ढूंढ रही हो, और मैं शून्य का आखरी हिस्सा

पर ना तुम कभी भविष्य देख पाओगी, ना मैं कभी इतिहास
ना तुम अनंतता तक पहुंच पाओगी, ना मैं शून्य के आखरी छोर तक

क्योंकि शून्य का आखरी हिस्सा भी अनंत है,तुम और मैं एक ही खोज में है
पर अलग अलग राह पर। यही गीता का सार है, जिसे न तुम समझ पा रही रही हो, और ना मैं समझ पा रही हूं।

“ये सब मेरी काल्पनिकता है पर अक्सर कल्पनाएं सच हो जाती है। कल्पनाओं में लिखे गए कई काव्य सच निकले, कल्पनाओं में लिखी गई कई वैज्ञानिक अवधारणाएं सच हुई”

कवियों की काल्पनिकता एक अनोखा सच है।

नंदनी खरे


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Ranjan Gupta

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