Rishte aur ziwan par kavita: Life has many streams and there is no single way to lead the life. World has questions and more questions. Conformity to the norms taught to us is not necessarily the only way. The bitterness of unfulfilled life is a state of mind that comes from too many expectations and not being able to meet them. This poem talks about shedding those unnecessary heavy weights.
ये जरूरी तो नहीं | Rishte aur ziwan par kavita
कुछ रिश्ते नामों के परे हैं,
और कुछ सिर्फ़ नाम के.
तो फिर,
हर रिश्ते को,
हम कोई नाम दें,
ये जरूरी तो नहीं.
कुछ साथ चलते हुए भी,
अनजाने हैं,
और कुछ,
दूर रहकर भी,
हमसफ़र से बढ़कर.
तो फिर,
हर सफ़र में,
कोई हमसफ़र हो,
ये जरूरी तो नहीं.
क्या आपने,
घनन अंधेरी रात में,
टिमटिमाते सितारों की दुनिया देखी है?
तो फिर,
हर रात,
चाँदनी रात हो,
ये जरूरी तो नहीं.
हम कौन हैं?
कहाँ से आये हैं?
कहाँ जाना है?
सदियों से लोगों में,
ये जानने की ख्वाहिश रही है.
तो फिर,
हमें ही इनका जवाब मिल जाए,
ये जरूरी तो नहीं.
मैं दुनिया से अलग तो नहीं,
पर उस भीड़ में शामिल भी नहीं,
शायद मैं उसके काबिल भी नहीं.
तो फिर,
मैं उस भीड़ से
जुड़ जाऊँ,
ये जरूरी तो नहीं.
एक ही दुनिया है सबकी,
पर सबके संसार अलग क्यूँ हैं?
एक ही मंजिल है सबकी,
पर सबके रास्ते अलग क्यूँ हैं?
सभी समय की गिरफ़्त में हैं,
फिर भी भाग रहें हैं.
क्या उनके पास समय नहीं है?
तो फिर,
मैं भी उस दौड़ में
शामिल हो जाऊँ,
ये जरूरी तो नहीं.
कैसे रास्ते?
कैसे मोड़?
कैसी मंजिल?
हमें तो इन नज़ारों
ने रोक रखा है,
हमारे कदमों को,
इन मंजरों ने बाँध रखा है.
और फिर,
हमारे सभी कदम
मंजिल की ओर जाते हों,
ये जरूरी तो नहीं.
(नलिन कुमार ठाकुर)
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