Poems on Holi in hindi | Holi Poems 2025: रंगों का त्योहार होली आ चुका है। होली से एक दिन पहले होलिका दहन मनाया जाता है। इसे छोटी होली भी कहा जाता है। इस मौके पर सभी के बीच उत्साह और उमंग का माहौल है। इस लेख में हम आपके लिए कुछ कविताएं लेकर आए हैं जो होली पर आधारित है। इन कविताओं की मदद से यह दिन और भी ज्यादा खास बनाया जा सकता है। तो आइए देखते हैं होली पर शानदार कविताएं।
आज होली है | Poems on Holi in hindi
जब दूरियों को मिटाकर,
अनजानों को गले लगाओ,
तो होली है.
जब भेद भाव के बिना,
सभी जगह
खुशियाँ बिखेरो,
तो होली है.
जब अपने साथ,
दूसरों के जीवन में भी रंग बरसाओ,
तो होली है.
जब तुम्हारे चेहरे पर हँसी के रंग,
और दूसरों के गालों पर ख़ुशी के गुलाल हो,
तो होली है.
जब सभी विकृत विचारों को,
होलिका में दहन कर सको,
तो होली है.
जब तुम्हारे ढोल नगाड़े पर,
लोग बेझिझक झूम उठे,
तो होली है.
जब ये हमारी और तुम्हारी नहीं,
हम सबकी होली हो,
तो होली है.
अब अपने आप को भुल जाओ,
रंगों में सराबोर हो जाओ,
झूम के नाचो,
और ठहाकों के गुलाल उड़ाओ,
आज होली है.
-नलिन कुमार ठाकुर
देखो आई होली
देखो आई होली, रंगों की टोली,
खुशियों से भर दो, अपनी ये झोली।
गुलाल का रंग, प्रेम की तरंग,
सबके दिलों में, उमंग का ढंग।
ढोलक की थाप, मंजीरों की धुन,
नाचो गाओ सब, होकर के मगन।
बैर भुलाकर, प्रेम से मिलो,
मीठे पकवानों का, आनंद लो।
बच्चे बड़े सब, मिलकर मनाएं,
होली के रंग, हर दिल में छाएं।
बुराई की होलिका, आज जल जाए,
अच्छाई का रंग, हर ओर फैल जाए।
-पं• उत्तम शर्मा
खुशियों का त्योहार
रंगों की बौछार, खुशियों का त्योहार,
आया है देखो होली का त्योहार।
लाल, पीले, हरे, नीले रंग,
सबके दिलों में भरते उमंग।
गुझियों की मिठास, ठंडाई की बात,
अपनों के संग मिलकर मनाते ये खास दिन और रात।
भेदभाव भूलकर, गले मिलते हैं सब,
होली के रंगों में रंग जाते हैं सब।
ये त्योहार लाए खुशियाँ अपार,
सबके जीवन में लाए प्यार।
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
-पं• उत्तम शर्मा
बेरंग होली | Holi Poems 2025
अबकी होली बेरंग हो गई,
छूट गए सारे रंग ।
ना आई वों मुझसे मिलने,
ना मैंने बढ़ाए कदम ।
बोलों सा..रा…. रा…रा… ।
अबके रंग कुछ गरीबीं ने लूटे,
कुछ रंग किसी की अमीरी से छूटे।
बात वह नहीं आज रहीं,
छूट गया अपनों का संग ।
बोलों सा..रा…. रा…रा… ।
रंग हरा, पीला और लाल, गुलाबी,
याद दिलाए दोस्तीं- यारीं।
वो जाम खाली आज छलक रहे थे,
उसमें ना थी कोई उमंग ।
बोलों सा..रा…. रा…रा… ।
महंगाई का आलम सारा,
दाल – रोटी से भी मुश्किल गुजारा ।
कैसे लाऊं मैं मिठाइयांँ,
देख बच्चों की अखिंयन में पीड़ा,
उड़ गए चेहरे के मेरे रंग ।
बोलों सा..रा…. रा…रा… ।
-महेश बालपांडे
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