दोस्त भी शहर के ज़माने के | Hindi poem on friendship

By Ranjan Gupta

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Hindi poem on friendship
 Hindi poem on friendship – Poems Wala

Hindi poem on friendship

एक बार को शहर में गांव को ढूंढा, 
ख़ूब ढूंढा तो पाया स्वयं को
अकेला, खुश रहने की कोशिश करता
हाय! क्या होगा मेरे वजूद को 

ये गांव, शहर, अकेलापन, दोस्त 
सब ऐसे लिपटे है जैसे सर्द हो
जब साथ था तो अकेलापन चाहता था
अब अकेले हूं तो समझा उस मर्म को 

ये दोस्त भी शहर के ज़माने के हैं
कॉल ना करो तो उन्हें भी याद नहीं आती
ये गांव तो दोस्त बनने की महानगरी रही है
शायद शहर की पहचान ही अकेले से होती है

कोई है तो वो हैं सोशल मीडिया के चंद यार
जो हैं शहरी कमरों के दरवाजों के बिलकुल पास
ज़रुरत पड़ी तो ये दरवाज़े ख़ुद ही खुल जायेंगे
मौका मिला तो वो भी गावों के तरफ लौट जायेंगे।
~ रंजन गुप्ता 

Thank You So Much For Reading This poem. I’m waiting for your valuable comment

Ranjan Gupta

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