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फुर्सत नहीं | Hindi Ghazal on Solitude | Shagun

By Ranjan Gupta

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Hindi Ghazal on Solitude

Hindi Ghazal on Solitude: अकेले में समय बिताना स्वाभाविक तौर पर नकारात्मक नहीं होता, बल्कि हमें दृढ इच्छा, शक्तिवान बनाने में मददगार हो सकता है। यह एक स्कारात्मक प्रक्रिया है जबकि अकेलापना नकारात्मकता व पूर्वाग्रह का एक प्रकार है। 

सबके बीच में भी अकेले हो जाने का दर,
मुस्कुराहटों के पीछे दर्द छुपाने का दर।
याद में दफन हो जाने की चाह और
फिर अपने प्रीतम में खोने की आरजू।


फुर्सत नहीं | Ghazal on Solitude

फुर्सत नहीं है कहता हूं
मगर गम हमेशा सहता हूं।
बयां नहीं करता दर्द अपना
मगर गुम जरा सा रहता हूं।

एक जमाना हो गया मुस्कुराहट दिल में लाए
होंठों की मुस्कुराहट से तो सिर्फ दर्द छुपाता हूं।
कहीं अल्फ़ाज़ गलत वजह न बनाले अश्क जताने के
इसलिए खामोश ख्वाब सजाता हूं।

कितने सौदे है इश्क के, बस निभाता कोई नहीं
कोई कहता है उल्फत हूं
किसी को कत्ल के वादे मालूम नहीं
पता नहीं कब तक जिंदा रहूंगा
तू कहेगा तो अभी ही दिल जलाता हूं
तुझसे दूर होकर भी ले मै तुझमें ही फ़नहा हो जाता हूं।

फुर्सत नहीं है कहता हूं
मगर गम हमेशा सहता हूं
बयां नहीं करता दर्द अपना
मगर गुम जरा सा रहता हूं।

Shagun


तुम | Hindi Ghazal

महफिलों में भी गुम सा रहने लगा हूं
आइनो की हिरासत से में बचने लगा हूं।
किसने कहा मुस्कुराहटें कुछ बयां नहीं कर पाती
कभी आना सजदे में हमारे बातें ही मुस्कुराहटों से करने लगा हूं।

अश्क कुछ के पाते उससे पहले तुम गुम हो गए
बात सिर्फ इतनी सी थी की हम तुम पर फनाह हो गए
कैसे कुरबत की चाहत रखते, चाहत तो मंजिलों में होती है
हम तो सफ़र में ही न जाने कहां से कहां दफन हो गए।

काश दिल के धड़कने का दायरा नही पता होता
शायद दरमियानों में इश्क जताने का कायदा नही पता होता
मिलते फिर किसी और जहां में रूबरू होकर
अगर मझधार के किनारों का पता न होता।

Shagun

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Ranjan Gupta

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