Prayer of the brave wife of the martyr: पति की मृत्यु एक अप्रत्याशित सदमा है। इससे, हमारे भविष्य के सपने एक पल में खत्म हो जाते हैं। पति की शहादत को स्वीकार कर आगे बढ़ना एक कठिन प्रक्रिया है। आखों के आंसू पोछकर इस बात को स्वीकार कर जाना कि वीरता उसके बाद भी रहे तो यह प्यार की निशानी है। एक ऐसा प्यार जो एक वीरपत्नी ही निभा सकती है। इसी संदर्भ में हमारे कवि डाॅ. महेश बालपांडे जी ने ‘महबूब मेरे | शहीद की वीरपत्नी की अरदास’ कविता लिखी है। आइए पढ़ते हैं…
महबूब मेरे (शहीद की वीरपत्नी की अरदास)
आज इस तन्हाई में मेरे महबूब,
तुम मुझे बहुत याद आने लगे।
ना चाहते हुए हमदम मेरे,
आँखो से आंसू मेरे छलकने लगे।
सोचती हूंँ मैं तुम आओगे जरूर,
अपने सीने से एक बार लगाओगे जरूर।
चुपके से कभी आकर पास मेरे,
दिल की प्यास बुझाओगे जरूर।
देखती हूँ अक्स तुम्हारा, हमारे लाल में।
मै खो जाती हूंँ, उसके पागलपन में।
जब भी पूछता है वह पापा कब आएंँगे,
उसके सवालों से अक्सर सिहर जाती हूंँ।
देखती हूंँ रोज तुम्हारी शहादत को,
चंद नेताओं ने कैसे नीलाम किया।
तुम शहीद होकर तो अमर हो गए,
पर तुम्हारी अमरता को इन्होंने रौंद दिया।
देश के दुश्मन सिर्फ सरहद पार नही,
अंदर तो इनका कुणबा है बड़ा।
वीरों का परिवार जीए या मरें,
इनका न कोई किसी से वास्ता।
कसूर इनका नहीं महबूब तुम्हारा भी था,
तुमने इन्हे जो अपना परिवार समझा,
हाले दिल हमारा अब बेहाल है,
कैसे जीएँ यहांँ और जाएँ तो जाएँ कहांँ।
कविराज :- डाॅ. महेश®बालपांडे
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