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बदलाव अच्छे हैं | Poem about Life in Hindi
कोरोना महामारी ने तो यूं कईयों की जान ही निकाल दी,
चाहे वो किसी से मिलने की तड़प हो या बेगानापन
कई रिश्ते बने और कई रिश्ते टूटे
कुछ बनते बनते रह गए तो कुछ बिगड़ते बिगड़ते।
जो कामों की वजह से हमारे दरवाजे तक को नहीं आ पाए थे
आज साथ बैठकर चाय और कुछ
अपनी तो कुछ हमारी बात करते हैं।
आज जब शाम को सभी लोगो को
अपने छत पर देखता हूं,
तो बहुत खुशी होती है अन्यथा
लोगों को बंद कमरों से फुर्सत कहां थी
समय देते देते सबकुछ मुमकिन सा लगने लगा है ,
इन शहरों में गावो को ढूंढ़ना आदत सा बनने लगा है
पतंगे तो दोनों जगह उड़ते देखा,
पर लड़ते देख अच्छा लग रहा है
आज उनके पकवानो से हमारा और
हमारे से उनका प्लेट सजता देख अच्छा लग रहा है।
आज जब ऑनलाइन क्लास करता हूं,
तो लगता है मैं किसी और की दुनिया में हूं
पर जब आसमां को देखता हूं,उड़ते पक्षियों को देखता हूं,
शान्ति को महसूस करता हूं
तो मुझे आज का ये दौर अच्छा लगता है।
इस महामारी के चलते मैं देर तक को सो जाता हूं ,
कोशिश करता हूं कि ज्यादा देर मूवी ना देखूं,
कोशिश तो पहले भी बहुत किया था पर आज
इसकी हवाला देकर खुद को तसल्ली देना अच्छा लग रहा है।
मैं भी सोचता था कि यार कब वो दिन आएगा
जब हम कुछ ना कर रहे होंगे
पर आज पता चलता है ये कहीं ज्यादा मुश्किल है।
घर,मम्मी- पापा सारे लोगो की याद आ रही है
पर इससे इतर एक और बात कि
हम अपने परिवार के बारे में सोच रहे है
वरना सामान्य जिंदगी में तो हमारे लक्ष्य,
किताबें इसी से घिरा हुआ रहते हैं।
अंत में बस यही कहूंगा कि
संभल सकते हो तो संभल लो दोस्तों,
वरना वो भी समय दूर नहीं जब
संभालते- संभालते ख़ुद घुटने टेक दोगे।
रंजन गुप्ता
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Thank You So Much For Reading This poem. I’m waiting for your valuable comment
Ati sundar