20+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित | Sanskrit Shlokas with Hindi Meaning

By Ranjan Gupta

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20+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित | Sanskrit Shlokas with Hindi Meaning : एक श्लोक संस्कृत में एक पद्य (verse) होता है जो
सांस्कृतिक ग्रंथों
, पुराणों, और धार्मिक ग्रंथों में पाया जाता है। (
Sanskrit Shlokas With
Meaning in Hindi
वहीं, संस्कृत (Sanskrit) एक प्राचीन भाषा है जो भारतीय उपमहाद्वीप के
इतिहास
, धर्म, और साहित्य के लिए महत्वपूर्ण है। (20+ संस्कृत के श्लोक व उनके अर्थ) संस्कृत में
श्लोक का महत्व विभिन्न क्षेत्रों में होता है
, जैसे कि साहित्य,
धर्म,
दार्शनिक
अध्ययन
, और भाषा सीखने के लिए। (Popular Slokas With Hindi Meaningइसके अलावा, भगवद गीता के श्लोक
आध्यात्मिक उन्नति के माध्यम के रूप में विशेष महत्व रखते हैं और मानव जीवन के
मूल्यों और नीतियों को सीखने में मदद करते हैं। 
(Sanskrit Shlokas for Students)संस्कृत के प्राचीन ग्रंथ,
जैसे कि
वेद
, उपनिषद, और सूत्र, में भी श्लोकों का
महत्व है। 
(Sanskrit Shlok On Life With Hindi Meaningये श्लोक धार्मिक और दार्शनिक गुणवत्ता के साथ ज्ञान का स्रोत होते हैं।

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Disclaimer: We have tried to explain the Hindi meaning of the above verse in simple language  We do not claim that this is definitely the Hindi version of the verse.

आज हम यहां आपके सामने कुछ संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlok) उनके
हिंदी अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं और आशा यही रहेगी कि आपके जीवन में इंच लोग
की मदद से कुछ बदलाव आए एवं यह जीवन पहले से सरल व शांति दायक बने। अगर आपको कुछ
लोग पसंद आए या सभी श्लोक में जिंदगी का सार दिखे तो कृपया इस आर्टिकल को शेयर
कीजिए और दी हुई सीखो को अपने जीवन में लाने की कोशिश कीजिए।

Popular Sanskrit Shlokas with Meaning
Sanskrit Shlokas with Hindi Meaning

20+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित | Sanskrit Shlokas with Hindi Meaning

(1). काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव
च ।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच
लक्षणं ।।

अर्थ– हर विद्यार्थी में हमेशा कौवे की तरह कुछ नया सीखाने की चेष्टा,
एक
बगुले की तरह एक्राग्रता और केन्द्रित ध्यान एक आहत में खुलने वाली कुते के समान
नींद
, गृहत्यागी और यहाँ पर अल्पाहारी का मतबल अपनी आवश्यकता के अनुसार खाने
वाला जैसे पांच लक्षण होते है।


(2). आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ।।

अर्थ – व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन आलस्य होता है, व्यक्ति
का परिश्रम ही उसका सच्चा मित्र होता है। क्योंकि जब भी मनुष्य परिश्रम करता है तो
वह दुखी नहीं होता है और हमेशा खुश ही रहता है।


(3). परान्नं च परद्रव्यं तथैव च प्रतिग्रहम् ।
परस्त्रीं
परनिन्दां च मनसा अपि विवर्जयेत ।।

अर्थात् : पराया अन्न, पराया धन, दान, पराई
स्त्री और दूसरे की निंदा
, इनकी इच्छा मनुष्य को कभी नहीं करनी चाहिए


(4). उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि
सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥

अर्थात् : कोई भी काम कड़ी मेहनत के बिना पूरा नहीं किया जा सकता है
सिर्फ सोचने भर से कार्य नहीं होते है
, उनके लिए प्रयत्न भी करना पड़ता है। कभी
भी सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं आ जाता उसे शिकार करना पड़ता है।

Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi

(5). आपदामापन्तीनां हितोऽप्यायाति हेतुताम् ।
मातृजङ्घा
हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने ॥

अर्थात् : जब विपत्तियां आने को होती हैं, तो हितकारी भी उनमें
कारण बन जाता है। बछड़े को बांधने मे माँ की जांघ ही खम्भे का काम करती है।


(6). तावत्प्रीति भवेत् लोके यावद् दानं प्रदीयते ।
वत्स:
क्षीरक्षयं दृष्ट्वा परित्यजति मातरम् ।।

अथार्त् : लोगों का प्रेम तभी तक रहता है जब तक उनको कुछ मिलता रहता
है। मां का दूध सूख जाने के बाद बछड़ा तक उसका साथ छोड़ देता है।


(7). सुसूक्ष्मेणापि रंध्रेण प्रविश्याभ्यंतरं रिपु: ।
नाशयेत्
च शनै: पश्चात् प्लवं सलिलपूरवत् ।।

अर्थात् : नाव में पानी पतले छेद से भीतर आने लगता है और भर कर उसे
डूबा देता है
, उसी तरह शत्रु को घुसने का छोटा रास्ता या कोई
भेद मिल जाए तो उसी से भीतर आ कर वह कबाड़ कर ही देता है।

 

(8). मानात् वा यदि वा लोभात् क्रोधात् वा यदि वा भयात् ।
यो
न्यायं अन्यथा ब्रूते स याति नरकं नरः।।

अर्थात् : कहा गया है कि यदि कोई अहंकार के कारण, लोभ से,
क्रोध
से या डर से गलत फैसला करता है तो उसे नरक को जाना पड़ता है।

20+ संस्कृत के श्लोक व उनके अर्थ 

(9). त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।
ग्रामं
जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ।।

अर्थात् : कहते हैं कि कुल की भलाई के लिए की किसी एक को छोड़ना पड़े
तो उसे छोड़ देना चाहिए। गांव की भलाई के लिए यदि किसी एक परिवार का नुकसान हो रहा
हो तो उसे सह लेना चाहिए। जनपद के ऊपर आफत आ जाए और वह किसी एक गांव के नुकसान से
टल सकती हो तो उसे भी झेल लेना चाहिए। पर अगर खतरा अपने ऊपर आ पड़े तो सारी दुनिया
छोड़ देनी चाहिए।


(10). निर्विषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा ।
विषं भवतु वा माऽभूत् फणटोपो भयङ्करः।।

अर्थ : सांप जहरीला ना होने पर भी फन जरूर उठाता है, अगर वह
ऐसा भी ना करें तो लोग उसकी रीड को जूतों से कुचल कर तोड़ देंगे।


(11). अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते ।
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः ।।

अर्थ: किसी स्थान पर बिन बुलाए चले जाना, बिना पूछे बोलते
रहना
, किसी व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करना मूर्ख
लोगों के लक्षण हैं।


(12). राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः।
भर्ता च
स्त्रीकृतं पापं शिष्य पापं गुरस्था ॥

अर्थ : राष्ट्र के अहित का जिम्मेदार राजा का पाप होता है, राजा के
पाप का जिम्मेदार उसका पुरोहित (मन्त्रीगण) होता है
, स्त्री के गलत कार्य
का जिम्मेदार उसका पति होता है और शिष्य के पाप का जिम्मेदार गुरु होता है।

Popular Slokas With Hindi Meaning

(13). पुस्तकस्था तु या विद्या परहस्तगतं धनम् ।
कार्यकाले
समुत्पन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ॥

अर्थ : ज्ञान यदि पुस्तक में ही रहे (अर्थात् उसे पढ़ा न जाए) और स्वयं का धन
यदि किसी अन्य के हाथों में हो तो आवश्यकता पड़ने पर उस ज्ञान और धन का उपयोग नहीं
नहीं किया जा सकता।


(14). दानेन तुल्यो विधिरास्ति नान्यो लोभोच नान्योस्ति रिपुः पृथिव्यां ।
विभूषणं
शीलसमं च नान्यत् सन्तोषतुल्यं धमस्ति नान्य् ॥

अर्थ : दान के समान अन्य कोई अच्छा कर्म नहीं है, लोभ के समान इस
पृथ्वी पर कोई अन्य शत्रु नहीं है
, शील के समान कोई गहना नहीं है और सन्तोष के समान
कोई धन नहीं है।


(15). अहो दुर्जनसंसर्गात् मानहानिः पदे पदे ।
पावको
लौहसंगेन मुद्गरैरभिताड्यते ॥

अर्थ : दुष्ट के संग रहने पर कदम कदम पर अपमान होता है। पावक (अग्नि) जब लोहे के साथ होता है तो उसे घन से पीटा जाता है।


(16). स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा ।
सुतप्तमपि
पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥

अर्थ : उपदेश देकर किसी के स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, पानी को
कितना भी गरम करो
, कुछ समय बाद वह फिर से ठंडा हो ही जाता है।

Sanskrit Shlokas for Students 

(17). जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं ।
मानोन्नतिं
दिशति पापमपाकरोति 
चेतः
प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं
सत्संगतिः
कथय किं न करोति पुंसाम् ।।

अर्थ : अच्छी
संगति जीवन का आधार हैं अगर अच्छे मित्र साथ हैं तो मुर्ख भी ज्ञानी बन जाता हैं
झूठ बोलने वाला सच बोलने लगता हैं
, अच्छी संगति से मान प्रतिष्ठा बढ़ती हैं पापी
दोषमुक्त हो जाता हैं
| मिजाज खुश रहने लगता हैं और यश सभी दिशाओं में
फैलता हैं
| मनुष्य का कौनसा भला नहीं होता ।

(18). चन्दनं शीतलं लोके ,चन्दनादपि चन्द्रमाः ।
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये
शीतला साधुसंगतिः ।।

अर्थ : चन्दन
को संसार में सबसे शीतल लेप माना गया हैं लेकिन कहते हैं चंद्रमा उससे भी ज्यादा
शीतलता देता हैं लेकिन इन सबके अलावा अच्छे मित्रो का साथ सबसे अधिक शीतलता एवम
शांति देता हैं
|


(19). अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |
उदारचरितानां
तु वसुधैव कुटुम्बकम्
|

अर्थ : तेरा
मेरा करने वाले लोगो की सोच उन्हें बहुत कम देती हैं उन्हें छोटा बना देती हैं
जबकि जो व्यक्ति सभी का हित सोचते हैं उदार चरित्र के हैं पूरा संसार ही उसका
परिवार होता हैं
|


(20). आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात् ।
दिनस्य
पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना
, छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥

अर्थात् : दुर्जन की मित्रता शुरुआत में बड़ी अच्छी होती है और क्रमशः
कम होने वाली होती है। सज्जन व्यक्ति की मित्रता पहले कम और बाद में बढ़ने वाली
होती है। इस प्रकार से दिन के पूर्वार्ध और परार्ध में अलग-अलग दिखने वाली छाया के
जैसी दुर्जन और सज्जनों व्यक्तियों की मित्रता होती है।

Sanskrit Shlok On Life With Hindi Meaning

Disclaimer : ऊपर दिए गए श्लोक का हिंदी अर्थ हमने सामान्य भाषा में बताने की कोशिश की है हम इसका दावा नहीं करते कि यह निश्चित ही श्लोक का हिंदी अवतरण है। 

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में समझने में कोई दिक्कत हो या कोई सवाल है तो कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है हम
आपके प्रश्न का उत्तर जरूर देंगे। अगर ये पोस्ट आपको अच्छा लगा तो अपने दोस्तों के
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Ranjan Gupta

मैं इस वेबसाइट का ऑनर हूं। कविताएं मेरे शौक का एक हिस्सा है जिसे मैनें 2019 में शुरुआत की थी। अब यह उससे काफी बढ़कर है। आपका सहयोग हमें हमेशा मजबूती देता आया है। गुजारिश है कि इसे बनाए रखे।

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